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[प्रतिक्रमण-आवश्यक
पाठ ७ मो (१) समकितनुं साचुं स्वरूप भगवाने केवू कडुं छे ते हवे कहेवामां आवे छे. ते समजीने साची श्रद्धा करवी. प्रथम मुख्य बे तत्त्वो जे जीव अने अजीव तेमनुं स्वरूप.
जीवो चरित्तदंसणणाणठिदो तं हि ससमयं जाण । पोग्गलकम्मपदेसट्ठिदं च तं जाण परसमयं ॥२॥
जीव चरित-दर्शन-ज्ञानस्थित स्वसमय निश्चय जाणवो; _ स्थित कर्मपुद्गलना प्रदेशे परसमय जीव जाणवो. २..
- अर्थ :-हे भव्य ! जे जीव दर्शन-ज्ञान-चारित्रमा स्थित थई रह्यो छे तेने निश्चयथी स्वसमय जाण; अने जे जीव पुद्गलकर्मना प्रदेशोमां स्थित थयेल छे तेने परसमय जाण.
ववहारोऽभूदत्थो भूदत्थो देसिदो दु सुद्धणओ। भूदत्थमस्सिदो खलु सम्मादिट्ठी हवदि जीवो ॥११॥ व्यवहारनय अभूतार्थ दर्शित, शुद्धनय भूतार्थ छ; भूतार्थने आश्रित जीव सुदृष्टि निश्चय होय छे. ११.
अर्थ :-व्यवहारनय अभूतार्थ छे अने शुद्धनय भूतार्थ छे ओम ऋषीश्वरोले दर्शाव्युं छे; जे जीव भूतार्थनो आश्रय करे छे ते जीव निश्चयथी सम्यग्दृष्टि छे.
भूदत्थेणाभिगदा जीवाजीवा य पुण्णपावं च । आसवसंवरणिज्जरबंधो मोक्खो य सम्मत्तं ॥१३॥ भूतार्थथी जाणेल जीव, अजीव, वळी पुण्य, पाप ने आसरव, संवर, निर्जरा, बंध, मोक्ष ते सम्यक्त्व छे. १३. अर्थ :-भूतार्थ नयथी जाणेल जीव, अजीव बळी पुण्य, पाप