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प्रस्तावना (आमुख) परम पूज्य कहान गुरुदेवश्रीकी स्मृति स्मारकरूपमें देवलालीके मध्यमें अति मनोरम्य, शांत वातावरणमें पूज्य श्री कानजीस्वामी स्मारक ट्रस्ट नवनिर्मित हुआ है। जो पूज्य गुरुदेवश्रीकी अति प्रभावनाका निमित्त हुआ है। इस संकुलनमें न्यूनतम सुंदर सुंदर शिबिर, विधान तथा अनेक रोचक प्रवृत्तियाँ नित्य-प्रति चल रही हैं। जिसमें बालकसे लेकर अनेक मुमुक्षुओं लाभान्वित हुए हैं।
अति सुंदर आयतनोंयुक्त महाराष्ट्र प्राँत देवलाली एक तीर्थधाम बन गया है। यहाँ प्रतिदिन यात्रियोंका आवागमन रहता है। श्री दिगंबर महावीर मंदिर, आदिनाथ त्रिमूर्तिसे संयुक्त श्री परमागममंदिरमें अति मनोज्ञ शांतिनाथ भगवानकी मूर्ति तथा अष्ट बलभद्र भगवंत खड्गासन रूपमें बिराजमान हैं। अति सुंदर कांचकी चित्रकारीवाली दिवालोंसे समवसरणमंदिरमें बिराजमान चौमुख मुद्राधारी श्री सीमंधरस्वामी तथा चतुर्विंशति भगवंत और चोगानके मध्यमें गगनचुंबी मानस्तंभ ५३ फुट उन्नत स्थित है, जिसमें ऊपर-नीचे चतुर्मुख श्री सीमंधरस्वामी बिराजमान हैं। उसकी नीचे ३ वेदियाँ अद्भुत दृश्योंसे अंकित सुशोभित हैं। श्री वीतरागी भगवंतोंका दर्शन करते हुए मुमुक्षुओंको आश्चर्य होता है। वैराग्य प्रेरक चित्रालयमें चित्रों भी अद्भुत हैं।
पर्वाधिराज पर्युषणमें अनेक मुमुक्षुगण अपनी निज हितकी साधना हेतु देवलालीमें अधिक संख्यामें आते हैं। हिन्दी, मराठी मुमुक्षु भाई अधिक संख्या में लाभ लेते हैं। पर्युषण पर्वमें प्रत्येक प्रवृत्तिओंसे पूरा दिन आनंदमय आराधनापूर्वक व्यतीत हो जाता है। तथा शामको प्रतिदिन प्रतिक्रमण होता है। उसमें हिन्दी, मराठी मुमुक्षुओंको गुजराती प्रतिक्रमण पुस्तक तथा आलोचना-पाठ गुजराती भाषामें होनेसे समझमें