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प्रतिक्रमण-आवश्यक ]
|| श्री वीतरागाय नमः ||
सर्वसामान्य प्रतिक्रमण - आवश्यक
प्रतिक्रमणना बे प्रकार छे : (१) निश्चय अने ( २ ) व्यवहार. निश्चय प्रतिक्रमणनी व्याख्या' :
पूर्वे करेलुं जे अनेक प्रकारना विस्तारवाळु शुभाशुभ कर्म तेनाथी जे आत्मा पोताने निवर्तावे छे ( पाछो वाळे छे), ते आत्मा प्रतिक्रमण छे.
व्यवहार - प्रतिक्रमणनी व्याख्या :
पोतानां शुभाशुभ कर्मनो आत्मनिंदापूर्वक त्याग करवानी भाव - आत्माना सेवा विशुद्ध परिणाम के जेमां अशुभ परिणामोनी निवृत्ति थाय.
प्रतिक्रमणना नीचे प्रमाणे छ विभाग छे :
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(१) सामायिक,
(४) प्रतिक्रमण,
(२) तीर्थंकर भगवाननी स्तुति, (५) कायोत्सर्ग,
(३) वंदन,
(६) प्रत्याख्यान.
(विदेहक्षेत्रमां विचरंता भगवान श्री सीमंधरप्रभुनी आज्ञा लईने
प्रतिक्रमण शरू करवुं.)
समयसार गाथा ३८३
श्रावकप्रतिक्रमण (पंडित नंदलालजीकृत प्रस्तावनामांथी)