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[प्रतिक्रमण-आवश्यक जावदरहंताणं भयवन्ताणं पञ्जुवासं करेमि
तावकायं पावकम्म दुचरियं वोस्सरामि भावार्थ-ढाई द्वीप, दो समुद्र, पन्द्रह कर्म भूमियों में जो अर्हत आदि तीर्थंकर धर्माचार्य धर्मोपदेशक धर्मनायक धर्म चक्रवर्ती देवाधिदेव और ज्ञानी हैं, उनकी मैं वंदनादिक क्रिया करता हूँ, और हे भगवन् ! सामायिक स्वीकार करता हूँ तथा सर्व पापों का त्याग कर इन पापों को सामायिक समय पर्यंत मन-वचन-काय से न करूँगा, न कराउँगा और न करते हुये की अनुमोदना करुंगा। मैं अतिचारों का त्याग, अज्ञान की निंदा व अपनी दूषित आत्मा का तिरस्कार करता हूँ। मैं अरहंत भगवान की उपासना करूंगा, तब तक पाप कर्म और दुष्ट आचरणों का त्याग करता हूँ। अथ– अपरान्हिक देववन्दनायां पूर्वाचार्यानुक्रमेण सकल कर्म क्षयार्थं सामायिक समेतं कायोत्सर्ग करोम्यहम्
(नौ बार णमोकार मन्त्र का जाप करें)