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________________ प्रतिक्रमण-आवश्यक] (श्लोक) सिद्ध वस्तु वचो भक्त्या सिद्धान् प्रणमता-सदा । सिद्ध कार्याः शिवं प्राप्ताः सिद्धिंददतुनोऽव्ययाम् ।। भावार्थ-सिद्ध हो चुके हैं समस्त कार्य जिनके तथा परम सुख को प्राप्त हुए सम्पूर्ण सिद्धों को भक्तिवश हम प्रणाम करते हैं। वे सिद्ध प्रभु हमें अविनाशी मोक्ष सिद्धि प्रदान करें। (श्लोक) नमोऽस्तु धूत पापेभ्यः सिद्धेभ्यः ऋषि परिषदे। सामायिक प्रपद्येऽहं भव-भ्रमण सूदनम् ।। भावार्थ—मैं निर्दोष सिद्धों को तथा मुनि समुदाय को नमस्कार . करता हूँ तथा संसार के परिभ्रमण को नाश करने वाली सामायिक को धारण करता हूँ। (श्लोक) दव्वे खेत्ते काले भावय कदा वराहसो हयणम् । णिन्दण गरहण जुत्तो मण, बच, कायेण पाडिकमणम् ।। भावार्थ-द्रव्य, क्षेत्र, काल भाव, से मैंने कभी किसी की निन्दा, गर्दा की हो तो मैं मन, वचन, काय से उसका प्रतिक्रमण (पश्चाताप) करता हूँ। (श्लोक) खम्मामि सव्वजीवाणं, सब्बे जीवा खमंतु मे। मित्तिमे सब भूदेसु, वैरंमज्झ ण केणवि ।। अर्थ—मैं सब जीवों को क्षमा करता हूँ सब जीव मुझ पर
SR No.009232
Book TitlePratikraman Aalochana Samayik Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Mumukshu Mahila Mandal
PublisherJain Mumukshu Mahila Mandal
Publication Year2002
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size52 MB
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