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[ प्रतिक्रमण - आवश्यक
( सामायिक करने की प्रतिज्ञा )
भगवन् नमोऽस्तुते एषोऽहमथ अपरान्हिक देव बंदना करिष्यामि ( सामायिक स्वीकार :)
भावार्थ - हे भगवन्! मैं आपको नमस्कार करता हुआ संध्या काल की देव वंदना में सामायिक स्वीकार करता हूँ । अर्थात् सामायिक काल पर्यन्त किसी प्रकार का आरंभ नहीं करूंगा और न इस स्थान को छोड़कर स्थानान्तर गमन करूंगा तथा जो मेरे शरीर पर परिग्रह है उससे निर्ममत्व होता हुआ अन्य सब परिग्रहों को छोड़ता हूँ ।
(यहां समय की मर्यादा कर लेना चाहिये)
( सामायिक में चिन्तवन)
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(श्लोक)
सिद्धं संपूर्ण भव्यार्थ सिद्धेः कारण मुत्तमम् । प्रशस्त दर्शन ज्ञान चारित्रं प्रतिपादनम् ।।
सुरेन्द्र मुकुटाश्लिष्टपाद पद्मांशु प्रणमामि महावीरं लोक त्रितय
भावार्थ- सम्पूर्ण भव्यों के लिये इष्ट सिद्धि के सर्वोत्तम कारण तथा सम्यग्दर्शन--ज्ञान -- चारित्र के प्रतिपादन करने वाले अनंतानंत सिद्धों को मेरा नमस्कार हो ।
(श्लोक)
केशरम् ।
मंगलम् ।। भावार्थ - प्रमाण करते हुये इन्द्रों के मुकुटों पर जिन प्रभु के चरणों की प्रभा प्रकाशमान हो रही है ऐसे तीनों लोकों के मंगल स्वरूप श्री वर्धमान स्वामी को नमस्कार हो ।