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________________ २६] [ प्रतिक्रमण - आवश्यक ( सामायिक करने की प्रतिज्ञा ) भगवन् नमोऽस्तुते एषोऽहमथ अपरान्हिक देव बंदना करिष्यामि ( सामायिक स्वीकार :) भावार्थ - हे भगवन्! मैं आपको नमस्कार करता हुआ संध्या काल की देव वंदना में सामायिक स्वीकार करता हूँ । अर्थात् सामायिक काल पर्यन्त किसी प्रकार का आरंभ नहीं करूंगा और न इस स्थान को छोड़कर स्थानान्तर गमन करूंगा तथा जो मेरे शरीर पर परिग्रह है उससे निर्ममत्व होता हुआ अन्य सब परिग्रहों को छोड़ता हूँ । (यहां समय की मर्यादा कर लेना चाहिये) ( सामायिक में चिन्तवन) P (श्लोक) सिद्धं संपूर्ण भव्यार्थ सिद्धेः कारण मुत्तमम् । प्रशस्त दर्शन ज्ञान चारित्रं प्रतिपादनम् ।। सुरेन्द्र मुकुटाश्लिष्टपाद पद्मांशु प्रणमामि महावीरं लोक त्रितय भावार्थ- सम्पूर्ण भव्यों के लिये इष्ट सिद्धि के सर्वोत्तम कारण तथा सम्यग्दर्शन--ज्ञान -- चारित्र के प्रतिपादन करने वाले अनंतानंत सिद्धों को मेरा नमस्कार हो । (श्लोक) केशरम् । मंगलम् ।। भावार्थ - प्रमाण करते हुये इन्द्रों के मुकुटों पर जिन प्रभु के चरणों की प्रभा प्रकाशमान हो रही है ऐसे तीनों लोकों के मंगल स्वरूप श्री वर्धमान स्वामी को नमस्कार हो ।
SR No.009232
Book TitlePratikraman Aalochana Samayik Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Mumukshu Mahila Mandal
PublisherJain Mumukshu Mahila Mandal
Publication Year2002
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size52 MB
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