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________________ १२०] [प्रतिक्रमण-आवश्यक संसारमा ज भटकवू पडे छे; केमके जे समये जीवनो उपयोग अशुभ हशे ते समये तेने पापनो बंध थशे अने पापनो बंध थवाथी तेने नाना प्रकारनी माठी गतिओमां भ्रमण करवू पडशे अने जे समये उपयोग शुभ हशे ते समये ते शुभ योगनी कृपाथी तेने राजा, महाराजा आदि पदोनी प्राप्ति थशे; तेथी ते पण संसारने वधारनार छे. किन्तु, जे समये तेने शुद्धोपयोगनी प्राप्ति थशे ते समये संसारनी प्राप्ति ज थशे नहि, पण निर्वाणनी प्राप्ति ज थशे; माटे हे भगवान! हुं शुद्धोपयोगमां ज स्थित रहेवाने इच्छु छु. आत्मस्वरूपनुं नास्तिथी अने अस्तिथी वर्णन : १६. अर्थ:-जे आत्मस्वरूप-ज्योति, नथी तो स्थित अंदर के नथी स्थित बाह्य, तथा नथी तो स्थित दिशामां के नथी स्थित विदिशामां; तेम ज नथी स्थूल के नथी सूक्ष्म; ते आत्मज्योति नथी तो पुल्लिंग, नथी स्त्रीलिंग के नथी नपुंसकलिंग पण; वळी ते नथी भारी के नथी हलकी; ते ज्योति कर्म, स्पर्श, शरीर, गंध, संख्या, वचन, वर्णथी रहित छ, निर्मळ छे अने सम्यग्ज्ञानदर्शनस्वरूप मूर्ति छे; ते उत्कृष्ट ज्योतिस्वरूप हुं छु, किन्तु ते उत्कृष्ट आत्मस्वरूपज्योतिथी हुँ भिन्न नथी. त्रिकाळी आत्मानी शक्ति : २०. अर्थ:-हे भगवन् ! चैतन्यनी उन्नतिनो नाश करनार अने विना कारणे सदा वैरी ओवा दुष्ट कर्मे आपमां अने मारामां भेद पाड्यो छे. परंतु कर्मशून्य अवस्थामां जेवो आपनो आत्मा छे तेवो ज मारो आत्मा छे. आ समये ते कर्म अने हुं आपनी सामे खडा छीओ. तेथी ते दुष्ट कर्मने हठावी दूर करो; केम के नीतिमान प्रभुओनो तो ओ धर्म छे के ते सज्जनोनी रक्षा करे अने दुष्टोनो नाश करे.
SR No.009232
Book TitlePratikraman Aalochana Samayik Path
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJain Mumukshu Mahila Mandal
PublisherJain Mumukshu Mahila Mandal
Publication Year2002
Total Pages176
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size52 MB
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