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प्रतिक्रमण-आवश्यक]
[११६ अपेक्षाओ ज देख्युं छे. द्रव्यार्थिक नयनी अपेक्षाओ नहि. तेथी हे जिनेंद्र ! आ मारा मोहने ज सर्वथा नष्ट करो.
पर संयोग अध्रुव जाणी तेनाथी खसी, ओक ध्रुव आत्मस्वभावमां स्थित थवानी भावना :
१७. अर्थ:-वायुथी व्याप्त समुद्रनी क्षणिक जळलहरीओना समूह समान, सर्व काले तथा सर्व क्षेत्रे आ जगत क्षण मात्रमा विनाशी छे. ओवो सम्यक् प्रकारे विचार करी, आ मारुं मन समस्त संसारने उत्पन्न करनार व्यापार (प्रवृत्ति)थी रहित थइ, हे जिनेन्द्र ! आफ्ना निर्विकार परमानंदमय परमब्रह्मस्वरूपमां स्थित थवाने इच्छा करे छे. ___ शुभ, अशुभ उपयोगथी खसी शुद्ध उपयोगमा निवासनी भावना:
१८. अर्थ:-जे समये अशुभ उपयोग वर्ते छे ते समये तो पापनी उत्पत्ति थाय छे अने ते पापथी जीव नाना प्रकारना दुःखोने अनुभवे छे, जे समये शुभ उपयोग वर्ते छे ते समये पुण्यनी उत्पत्ति थाय छ; अने ते पुण्यथी जीवने *सुख प्राप्त थाय छे. ओ बंने पाप-पुण्यरूप द्वन्द्व संसार, ज कारण छे. अर्थात् ओ बन्नेथी सदा संसार ज उत्पन्न थाय छे, किन्तु शुद्धोपयोगथी अविनाशी अने । आनंदस्वरूप पदनी प्राप्ति थाय छे. हे अर्हत प्रभो! आप तो ते पदमां निवास करी रह्या छो, पण हुं शुद्धोपयोगरूप पदमा निवास करवाने इच्छु छु. ___भावार्थ :-उपयोगना त्रण भेद छे, पहेलो अशुभोपयोग, बीजो शुभोपयोग अने त्रीजो शुद्धोपयोग. तेमां पहेलां बे उपयोगथी तो
★ अनुकूळ संयोग