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प्रतिक्रमण - आवश्यक ]
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मारुं चित्त आपनामां लगाडतां छतां पण बाह्य पदार्थोमां दोडी - दोडी जाय छे अ ज मोटो खेद छे.
मोक्षार्थे वीर्यनो वेग :
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१३. अर्थ :- हे जिनेश ! आ संसार नाना प्रकारना दुःखो देनार छे. ज्यारे वास्तविक सुखनो आपनार तो * मोक्ष छे, तेथी ते मोक्षनी प्राप्ति अर्थे अमे समस्त धन, धान्य आदि परिग्रहोनो त्याग कर्यो, तपोवन (तपथी पवित्र थयेली भूमि) मां वास कर्यो, सर्व प्रकारना संशय पण छोड्या अने अत्यंत कठिन व्रत पण धारण कर्या, हजी सुधी तेवां दुष्कर व्रतो धारण कर्या छतां पण सिद्धि (मोक्ष) नी प्राप्ति न थइ. केम के प्रबळ पवनथी कंपायेला पांदडानी माफक अमाउं मन रात्रि - दिवस बाह्य पदार्थोमां भ्रमण करतुं रहे छे.
मनने संसारनुं कारण जाणी पश्चात्ताप :
१४. अर्थ :- हे भगवन् ! जे मन, बाह्य पदार्थोने मनोहर मानी तेमनी प्राप्ति माटे ज्यां त्यां भटक्या करे छे, जे ज्ञानस्वरूपी आत्माने विना प्रयोजने सदा अत्यंत व्याकुल कर्या करे छे, जे इन्द्रियरूप गामने वसावे छे (अर्थात् आ मननी कृपाथी ज इंद्रियोनी विषयोमां स्थिति थाय छे), अने जे संसार उत्पादक कर्मोंनो परम मित्र छे, (अर्थात् मन आत्मारूप गृहमां कर्मोने सदा लावे छे), ते मन, ज्यां सुधी जीवित रहे छे त्यां सुधी मुनिओने क्यांथी कल्याणनी प्राप्ति होइ शके! अर्थात् कल्याणनी प्राप्ति होइ शके नहि.
भावार्थ ः—ज्यां सुधी आत्मामां कर्मोनुं आवागमन रह्यां ज करे छे त्यां सुधी आत्मा सदा व्याकुळ ज थतो रहे छे. ते कर्म आत्मामां मनद्वारा आवे छे; केम के मनना आश्रयथी इन्द्रियो, रूप आदि देखवामां प्रवृत्त थाय छे अने रूप आदिने देखी जीव राग-द्वेष आदि
★ मोक्ष = आत्मानी संपूर्ण निर्मळ दशा.