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प्रतिक्रमण - आवश्यक ]
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भावार्थ :- हे भगवन् ! जो आप अनंत भेदसहित लोक तथा अलोकने ओकसाथे जाणो छो अने देखो छो तो आप मारा समस्त दोषोने पण सारी रीते जाणता ज हो. वळी हुं आपनी सामे निज दोषोनुं कथन ( आलोचन) करुं हुं ते केवळ आपने संभळाववा माटे नहि, किन्तु शुद्धि अर्थे ज करं छं.
हवे आचार्यदेव भव्य जीवोने तेमना आत्माने ऋण शल्य रहित राखवानो बोध आपे छे :
६. अर्थ :- हे प्रभो ! व्यवहार नयनो आश्रय करनार अथवा मूलगुण तथा उत्तरगुणोने धारण करनार मारा जेवा मुनिने जे दुषणोनुं संपूर्ण रीते स्मरण छे ते दूषणनी शुद्धिअर्थे आलोचना करवाने आपनी सामे सावधानीपूर्वक बेठो छु. केमके ज्ञानवान भव्य जीवोओ सदा पोताना हृदय मायाशल्य निदानशल्य अने मिथ्यात्वशल्य -- अत्रण शल्य रहित ज राखवा जोइओ .
स्वभावनी सावधानी :
१०. अर्थ :- हे भगवन् ! आ संसारमां सर्व जीव वारंवार असंख्यात लोकप्रमाण प्रगट तथा अप्रगट नाना प्रकारना * विकल्पो सहित होय छे. वळी ओ जीव जेटला प्रकारना विकल्पो सहित होय छे. तेटला ज विविध प्रकारना दुःखो सहित पण छे. परंतु जेटला विकल्पो छे तेटला प्रायश्चित्तो शास्त्रमां नथी; तेथी ते समस्त असंख्यात लोकप्रमाण विकल्पोनी शुद्धि आपनी समीपे ज थाय छे.
भावार्थ ः– यद्यपि दूषणोनी शुद्धि प्रायश्चित्त करवाथी थाय छे, किन्तु हे जिनपते ! जेटलां दूषणो छे तेटलां प्रायश्चित्तो शास्त्रमां कह्यां नथी; तेथी समस्त दूषणोनी शुद्धि आपनी समीपे ज थाय छे.
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. विकल्पो = शुभ, अशुभ भावो.