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[प्रतिक्रमण-आवश्यक क्रिया ओ कर्म, उपयोग ओ धर्म, परिणाम ओ बंध; भूल मिथ्यात्व, शोकने संभारवो नहीं—आ उत्तम वस्तु ज्ञानीओओ मने आपी. तुज पादथी स्पर्शाई ओवी धूलिने पण धन्य छे. . जेने पुण्यनी रुचि छे तेने जडनी रुचि छ, तेने आत्माना धर्मनी रुचि नथी. अहो! श्री सत्पुरुष! अहो ! तेमनां वचनामृत, मुद्रा अने सत्समागम ! वारंवार अहो ! अहो !! जैनं जयति शासनं अनादिनिधनम्. चैतन्यपदार्थनी क्रिया चैतन्यमां होय, जडमां न होय. निरंजन ज्ञानमयी परमात्मद्रव्य उपादेय छे. शिवमय, अनुपम-ज्ञानमय शुद्धात्मस्वरूप उपादेय छे. शुद्धात्मद्रव्यनी प्राप्तिना उपादानरूप निर्विकल्प समाधि उपादेय छे. केवळज्ञानादि गुणरूप जे शुद्धात्मस्वरूप छे ते आराधवा योग्य छे. चिदानंद चिद्रूप अक अखंडस्वभाव शुद्धात्मतत्त्व ज सत्य छे.