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५७. एकत्व योग अनन्त गुण सम्पन्न मेरे आत्मदेव! जीवन का सौरभ हवा के झोंकों में बह रहा था जीवन रस से भरा-भरा, फूल एक था खिला सरसता से परिपूर्ण फूल का पराग मधु रूप बन गया जीवन का राग भी प्रभु रूप सज गया जीवन की हर सांस में प्रेम गह-गहा उठा सर्वत्र प्रेम छा गया, प्रभु में समा गया अलि और कली में एकत्व योग बन गया हे मेरे प्रभो! हे मेरे विभो! मस्त होकर झूम रहा हूँ, तेरे प्रेम का पान कर मैं मस्त हो गया हूँ हे मेरे प्रभो! हे मेरे विभो!