SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 79
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 78 ५८. पीताभ प्रभु हे मेरे प्रभो ! हे मेरे विभो ! मुझे अन्तरिक्ष की तैयारी करती है मेरा अन्तर मुझे अन्तरिक्ष की ओर बढ़ा रहा है मन, प्राण और आत्मा को ऊपर चढ़ा रहा है प्राणों के घर्षण से कर्म रूपी ईंधन जल रहा है। काया के आकर्षण से निकलते-निकलते समस्त ईंधन समाप्त हो चुका है। मेरे प्रभो अब पाप-पुण्य रूपी ईंधन की कोई जरूरत नहीं हैं प्रभु स्वयं ऊपर खींच रहे हैं, सर्वत्र प्रकाश का राज्य है आनन्द की बयारें बह रही है, अलौकिक गरिमा छाई हुई है, पीताभ प्रभु स्वयं उपस्थित है। आत्मा और प्राण प्रभु चरणों में नमन करते हैं यही आत्म-परमात्म संयोग सुख है। आत्मपुंज घनीभूत प्रकाश पुंज में समा जाता है अनन्त में आत्मपुंज विलीन हो जाता है। मेरे प्रभो ! मेरे विभो !
SR No.009229
Book TitleAntar Ki Aur
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJatanraj Mehta
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2013
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy