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४८. ऋतुराज अनन्त की अठखेलियाँ करता रहा ऋतुराज है, बसन्त बन कर धरा पर उतर आया आज है। चहुँ ओर मादकता छा रही कुहू कुहू कोयल गा रही। अनन्त के ज्ञान से हृदय भर गया आज है, चारों ओर विहान से उतरा जब ऋतुराज है। प्रकृति पुरुष और चैतन्य का भेद सारा मिट गया अन्य भी भेद-विभेद अभेद हो गया प्रभु के चरणों में अमर्ष सारा खो गया अनन्त उजागर के चरणों में मैं सो गया अनन्त का था, फिर अनन्त का हो गया। भव-बंधन के कर्म कटने चाहिए अग-जग पाप-मग सम्पूर्ण हटने चाहिए।
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