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३७. अमीरस का निर्झर
हे मेरे आत्मदेव
अनन्त अमीरस का निर्झर बह रहा है आपके श्रीचरण मेरे हृदय को स्वच्छ, शुभ, स्फटिक सम पवित्र कर रहे हैं। आपके श्रीचरण का प्रसाद पाकर मेरा जीवन धन अनन्त गुना बढ़ गया है चहुँ ओर आनन्द ही आनन्द बरस रहा है तेरे श्रीचरणों की चमक से सारी सृष्टि की द्युति अनन्त गुणी अभिवृद्धि को पा रही है सर्वत्र इस सृष्टि में एक तेरी ही, ज्योत्स्ना दृष्टिगोचर हो रही है, मेरे जीवन-धन तुझे पाकर, मैंने जीवन के समस्त स्वप्नों को साकार कर लिया है। मेरे आत्मदेवजीवन वीणा के समस्त तार झंकृत हो उठे हैं। एक बार इन समस्त तारों को तूं सम्हाल ले।
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