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________________ ३८. प्रेम में पागल मेरे प्रभो! मेरे विभो! तेरे, एकमात्र तेरे, प्रेम में पागल बना मैं, इस संसार के किसी भी काम का न रहामुझे इसका दु:ख नहीं हैमुझे अत्यन्त हर्ष है कि तेरे द्वार पर पहुँचकर मैं अनन्त आनन्द की प्राप्ति कर रहा हूँ। हे भगवन्अब तू अपने बन्द द्वार उन्मुक्त कर दे जिससे मेरे अणु-अणु में आनन्द का साम्राज्य स्थापित हो जाय हे भगवन्- हे प्रभो- हे विभो हे मेरे प्रियतम-मेरे आनन्दघन विभो।।
SR No.009229
Book TitleAntar Ki Aur
Original Sutra AuthorN/A
AuthorJatanraj Mehta
PublisherPrakrit Bharti Academy
Publication Year2013
Total Pages98
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size19 MB
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