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३६. कोयल की कूक ध्यान की गहराईयों में, पूजा की अंगड़ाईयों में, कहीं, कोयल की कूक सुनाई दी। एकाएक आत्मविहग उस ओर उड़ान भर कर भागा, प्रभु-पूजा के गायन का
अलौकिक स्वर सुनकर,
अनहद नाद का झरना फूट पड़ा हे मेरे आत्मदेव! तू सदैव आत्मपूजा में मगन रह।