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३६४ वर-"खिखिणि-नेउर-सतिलय-"वलय-विभूसणिआर्हि रइ-कर-चउर-मणो-हर-सुंदर-दंसणिआर्हि ॥२७॥ चित्तक्खरा ॥ देवसुन्दरीहिँ पाय-वंदिआहिँ, वंदिआ य जस्स ते "सुविक्कमा कमा। अप्पणो “निडालएहि मंडणोडण-प्पगारएहिँ केहिँ केहि वि । अवंग-तिलय-पत्त-लेह-"नामएहिँ "चिल्लएहिँ संगयं गयाहिँ भत्ति- सन्निविट्ठ-वंदणा-गयाहिँ हुँति ते वंदिआ पुणो पुणो ॥२८॥
नारायओ ॥ तमहं जिण-चंदं अजिअं जिअ-मोहं । ७५धुअ-सव्व-किलेसं पयओ पणमामि ॥२९॥ नंदिअयं ॥
[कलावयं]
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सिरि-संति-जिण-थुई आगया वर-विमाण-दिव्व-कणग-रह-तुरय-"पहकर-सएहिं
हुलि । ससंभमोअरण-क्खुभिअ-लुलिअ-चल-कुण्डलं-गय-तिरीड
सोहंत-मउलि-माला ॥२२॥ वेड्डओ ॥ जं सुरसंघा सा-ऽसुर-संघा वेर-विउत्ता भत्ति-सु-जुत्ता आयर-भूसिअ-संभम-पिंडिअ-सुट्ठ-सु-विम्हिअ-सव्व-बलोघा । उत्तम-कञ्चण-रण- परुविअ-भासुर-भूसण-भासुरिअंगा ५ गाय-समोणय-भत्ति-वसाऽऽगय-पंजलि-पेसिय-सीस
पणामा ॥२३|| रयण-माला ॥ वंदिऊण थोऊण तो जिणं ति-गुणमेव य पुणो "पयाहिणं । पणमिऊण य जिणं सुराऽसुरा पमुइआ स-भवणाई तो गया।।२४||
खित्तयं. तं महा-मुणिमहं पि पंजली राग-दोस-भय-मोह-वज्जियं । देव-दाणव-नरिंद-वंदियं संतिमुत्तमं महातवं-नमे ॥२५॥
॥ खित्तयं ॥ सिरि-अजिअ-जिण-थुई ५ अम्बर-ऽन्तर-विआरणिआर्हि ललिअ-हंस-वहू-गामिणिआर्हि पीण-सोणि "थण-सालिणिआहिं सकल-कमल-दल
लोअणिआहि ॥२६॥ ॥ दीवयं ॥ पीण-निरन्तर-थण-भर-विणमिअ-गाय-लयाहिं मणि-कंचण-पसिढिल-मेहल -सोहिअ-सोणि-तडाहिं
सिरि-संति-जिण-थुई
थुअ-वंदिअस्सा रिसि-गण-देव-गणेहिँ तो देव-वहूहिँ पयओ पणमिअस्सा जस्स -जगुत्तम-सासणयस्सा भत्ति-वसागय पिंडिअयाहिँ । देव-वरच्छरसा बहुयाहिं सुर-वर-रइ-गुण-पंडिअयाहिँ ॥३०॥ भासुरयं ॥ वंस-सह-तंति -ताल-मेलिए “तिउक्खराऽभिराम-सद्द-मीसए कएअ सुइ-समाण-णेय-सुद्ध-सज्ज-गीय-पाय-जाल '-घंटिआर्हि वलय-मेहला-कलाव-नेउरा-ऽभिराम-सद्द-मीसए कएअ देव-नट्टिआर्हि २ हाव-भाव-विब्भम-प्पगारएहिं नच्चिऊण
अंग-हारएहि
D:Amishralsadhulprakrta.pm5/3rd proof