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गुरु-स्तुति जे कच्छवागड देशकेरा, परम उपकारी खरा, ज्यां ज्यां पड्या गुरुना चरण, त्यां त्यां बनी पावन धरा; अरिहंत प्रभु शासन प्रभावक, कार्यथी परहित करा, कलापूर्णसूरिवर चरणमां, होजो सदा मुज वंदना ......
ऐसा स्मृति-ग्रंथ आज तक देखने में नहीं आया । मात्र पेज और डिजाइन ही अच्छे हैं, ऐसा नहीं, पर अंदर लेख भी बहुत बढ़िया है। भिन्न-भिन्न समुदाय के भिन्न-भिन्न गच्छों के विद्वान महात्माओं ने जो पूज्यश्री के प्रति अहो भावपूर्वक लेख लिखे हैं, वे सचमुच पठनीय हैं, दिल-दिमाग को हिलानेवाले हैं । पूज्यश्री की जन्मकुंडली के लेख, अंजलि चतुर्विध संघ की ओर से स्मरण यात्रा इत्यादि लेख सचमुच शांति से पढ़नेलायक है । यद्यपि पूरा ग्रंथ गुजराती में है, फिर भी हिन्दी भाषिओं को पढ़ना चाहिए क्योंकि गुजराती कोइ कठिन भाषा नहीं है, थोडा बहुत प्रयत्न करने से मालूम हो जाता है । अंदर कई लेख हिन्दी में भी हैं, संस्कृत और गुजराती में भी हैं। ये दोनों भाग सचमुच जैन साहित्य के अलंकार हैं।"
- શ્રમણ ભારતી (ता. 30-१०-२००६)
जे मोक्षना अभिलाषथी सुविशुद्ध संयम धारता, भव-भ्रमणना निर्वेदथी विषयो कषायो वारता; जे रहे प्रवचन मात शरणे आतमा संभाळता, कलापूर्णसूरिवर चरणमां, होजो सदा मुज वंदना .................२
जे ब्रह्मचर्य वड़े निज परम पावन आतमा, शत्रु प्रमाद पछाड़ता बनवा सदा परमातमा; हितकार थोडं बोलता वैराग्य भरता वातमां, कलापूर्णसूरिवर चरणमां, होजो सदा मुज वंदना ...............
जे गुरुकृपाथी आगमोना अर्कने तुरत ज ग्रहे, अमृत थकी पण अधिक मीठी वाणी जिनवरनी कहे; आसक्ति पुद्गलनी तजीने निज स्वभावे जे रहे, कलापूर्णसूरिवर चरणमां, होजो सदा मुज वंदना ...............
जेना हृदयमां संघ पर वात्सल्यनु झरणुं वहे, शासन तणी सेवा तणो अभिलाष अंतरमा रहे; जस नाम मंत्र प्रभावथी सहु भाविको पापो दहे, कलापूर्णसूरिवर चरणमां, होजो सदा मुज वंदना .....
બજે મધુર બંસરી * ૪૫૫
બજે મધુર બંસરી + ૪૫૪