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तुह जिणपास! परोवयार-करणिक्क-परायण!; सत्तुमित्त-समचित्त वित्ति! नयनिंदय-सममण! मा अवहीरियऽजुग्गउवि मइपास निरंजण! २२ हउ बहुविह-दुहतत्तगतु तुह दुहनासणपरु, हउ सुयणह करुणिक्कट्ठाणु तुहु निरु करुणायरु; हउ जिणपास! अ सामिसालु तुहु तिहुअण-सामिय, जं अवहीरहि मई झंखंतं इय पास! न सोहिय २३ जुग्गाऽजुग्गविभाग नाह! नहु जोयहितुह समा, भुवणुवयार-सहावभाव करुणारस सत्तम; समविसमइं; किंघणु नियइभुवि दाह समंतउ?, इय दुहिबंधव! पासनाह! मइपाल थुणंतउ नय दीणह दीणयु मुयवि अनुवि किवि जुग्गय, जं जोइ वि उवयार करहि उवयारसमुज्जय; दीणह दीणु निहीणु जेण तइ नाहिण चत्तउ तो जुग्गउ अहमेव पास पालहि मई, चंगउ २५ अह अनुवि जुग्गय-विसेसु किवि, मन्नहि-दीणह, जं पासिवि उवयारु करइ तुहनाह समग्गह; सुरिचय किल कल्लाणु जेण जिण! तुम्ह पसीयह,
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