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भुवणऽब्भुउ अठ्ठविह सिद्धि सिज्झहि तुह नामिण; तुह नामिण अपवित्तओवि जणहोइ पवित्तउ, तं तिहुअणकल्लाणकोस! तुह पास! निरुत्तउ खुद्दपउत्तइ मंत तंत जंताइ विसुत्तइ,. चर-थिर-गरल-गहुग्ग-खग्ग-रिउवग्ग विगंजइ; दुत्थियसत्थ अणत्थघत्थ नित्थारइ-दर्थ करि, दुरियइ हरउ सपासदेउ ! दुरियक्करि केसरि! तुह-आणा थंभेइ भीम दप्पुध्धुरसुरवर-, रक्खस जक्खफणिंदविंद चोराऽनल जलहर; जलथरचारि रउद्दखुद्दपसुजोइणिजोइय, इय तिहुअण-अविलंघिआण जयपास! सुसामि! य पत्थिय-अत्थ-अणत्थतत्थ भत्तिभर निडभर, रोमं चंचिय-चारु कायकिन्नर-नर-सुरवर; जसु सेवहि कमल-मलजुयल पक्खालिय कलिमलु, सो भुवणत्तय-सामी पासमह-मद्दउ रिउबलु जयजोइय-मणकमल-भसल! भय पंजरकुंजर!, तिहुअणजण आणंदचंद भुवणत्तय-दिणयर!; जयमइ-मेइणि-वारिवाह! जयजंतु पियामह!,
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