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________________ COMINOR गुरुदेव कहते हैं... केवल स्वयं की अनुकूलता को दृष्टिगत रखना और दूसरों की प्रतिकूलता की परवाह न करना, यह जहरीली हटि है।मूल में हटियदि मलिन है-जहरीली है तो वह कषायों का हब बंधन है और इसीलिए हम अन्य किसी भी धर्म अथवा तप के लिए कष्ट करें, गुणस्थानक पर अग्रसर नहीं हो सकते। स्थल पिंडवाड़ा।समयथा दिपावली-अवकाश का। मात्र २५३० युवा वहाँ उपस्थित थे। उनमें मैं भी एक था।आपश्री हम सभी को प्रतिदिन ४-४ प्रवचन देते थे। इस दौरान एक बार रात में आपश्री ने मुझे बुलाया और अपने पास बिठाया। "इस संसार में कोई सार नहीं है।" "पर मैं किसी भी तरह दुःखी नहीं हूँ।" गुरुदेव ! मेरी इस तुच्छ बात के जवाब में आपश्री ने चांदनी के सौम्य प्रकाश में मुझे जो दृष्टान्त तर्क सहित दिये और संसार की असारता तथा संयमजीवन की सारभूतता समझाई उन्हें सुनकर मैं स्तब्ध रह गया था। "मुझे संयम का मार्ग अपनाना है।" "निर्णय पक्का?" और उन मंगल क्षणों में आपश्री ने मेरे सर पर आशीर्वाद की वर्षा कर दी थी, और मैंने आपश्री के समक्ष जीवनभर के लिए ब्रह्मचर्यव्रत अंगीकार कर लिया था। आपश्री के समक्ष मैंने अत्यन्त आनन्द और निश्चिन्तता की अनुभूति की थी। गुरुदेव! जिस कुशलता से आपने मेरा"ऑपरेशन" कर दिया था वह वास्तव में मेरे जीवन का श्रेष्ठतम चमत्कार था।
SR No.008925
Book TitleJivan Sarvasva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasundarsuri
PublisherRatnasundarsuriji
Publication Year
Total Pages50
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Spiritual
File Size23 MB
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