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________________ गुरुदेव कहते हैं... हम किसमें खुश? कचरा साफ हो उसमें या आभूषण कम हो उसमें? वु:ख में पाप की होली और कचरा साफ होने से आत्मा के लिए दिवाली। सुखसंपत्ति में पुण्य की होली और पुण्यधन जाने से आत्मा का दिवाला । बोलो, दु:ख में दुःखी होने जैसा है भला? सुख में पापी बनने जैसा है भला? तिथिथी चतुर्दशी। चातुर्मास था सुरत में।गुरुदेव, हम सब दर्शन करने के लिए बड़ाचौटा के जिनालय की ओर जा रहे थे। अचानक पता नहीं क्या हुआ? आप खड़े रह गये।मैं आपके पीछे चल रहा था। आपके निकट आया। आपने कहा, "रत्नसुंदर! आहारसंज्ञा को तोड़ना है या रहने देना है।" "तोड़ना ही है" "सचमुच?" "तो सुनो। यहाँ बडाचौटा के उपाश्रय में चातुर्मास हेतु विराजमान पूज्यपाद आचार्य भगवन्त कुमुदचंद्रसूरीश्वरजी महाराज हैं ना, संभवतया वर्तमान में उनके समान तपस्वी जिनशासन में और कोई नहीं है। दर्शन उपरांत हम उनके पास ही जा रहे हैं। हम सबको अपने मस्तक पर डलवाना है उनके वरद हस्तों से वासक्षेप। अपने पुरुषार्थ से भी जिस आहारसंज्ञा को हम नहीं तोड़ सकेंगे वह आहारसंज्ञा ऐसे वंदनीय तपस्वी आचार्य भगवन्त के आशीर्वाद से स्वत: टूटने लगेगी।" गुरुदेव! आपश्री की इस गुणानुरागिता को किन शब्दों में वंदन करूँ ? आप स्वयं तपस्वी और फिर भी अन्य समुदाय के तपस्वी पूज्यश्री के पास आशीर्वाद लेने की आपश्री की यह उदात्त वृत्ति? वंदन है आपकी उदारवृत्ति को।
SR No.008925
Book TitleJivan Sarvasva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasundarsuri
PublisherRatnasundarsuriji
Publication Year
Total Pages50
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Spiritual
File Size23 MB
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