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________________ गुरुदेव कहते हैं... आत्मा की स्वतंत्रता का उपयोग मलिन भावों को रोकने एवं शुभ भावों को विकसित करने में ही करना चाहिए। "गुरुदेव! दो मिनट" रथयात्रा के वरघोड़े में जाने के लिए गुरुदेव, आप आसन छोड़कर खड़े हो गये हैं। कपड़ा आपने ओढ लिया है। कँधे पर कमली भी डाल ली है और एक मुनिभगवंत को दंडा ले आने हेतु सूचित भी कर दिया है। "क्यों? क्या हुआ?" "आपने कपड़ा भी अच्छी तरह नहीं धारण किया और कँधे पर कमली भी ठीक तरह से नहीं डाली ! हम रथयात्रा के वरघोड़े में जा रहे हैं। आप तृतीय पद (आचार्य पद) पर विराजमान हो चुके हैं। सभी की दृष्टि आप पर होगी और आप ऐसे अस्तव्यस्त ? कैसा लगेगा?" "रत्नसुंदर, एक बात सदा स्मृतिपथ में रखना। जीवन में जो सादगी को अपनाता है उसका साधुजीवन बहुत सुंदर बना रहता है। भोजन के द्रव्य सादे, उपकरण सादे, चालचलन सादा, तमाम वस्तुएँ सादी । संक्षिप्त में, जीवन यदि सादगीभरा तो संयमजीवन की सुरक्षा निश्चित् ।काल अत्यन्त विषम है। पैसे लेकर घूमने वाला बनिया किसी की नज़र मेंन आये तभी तक सुरक्षित रह सकता है। इसी तरह, दूसरों की दृष्टि हम पर न पड़े, हमारा संयमजीवन तब तक ही सुरक्षित है।" गुरुदेव! संयमजीवन और संयम के परिणाम सुरक्षित रखने के लिए आप जिस हद तक जागृत और सावधान थे उस जागृति और सावधानी का मूल्य समझने की दृष्टि भी हमारे पास कहाँ है भला? गरिन्छ
SR No.008925
Book TitleJivan Sarvasva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasundarsuri
PublisherRatnasundarsuriji
Publication Year
Total Pages50
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Spiritual
File Size23 MB
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