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गुरुदेव कहते हैं... धर्मप्रवृत्ति में पापविचार को भूल से भी प्रवेश मत देना, पर पापप्रवृत्ति में धर्मविचार को प्रवेश दिये विना कभी मत रहना-पापप्रवृत्ति की रुचि को वह तोड़कर ही रहेगा।
बीज को मिट्टी मिल जाती है और वह स्वयं के विकसित होने की क्षमता प्रकट किये बिना नहीं रहता। स्याही की बूँद को ब्लॉटिंग पेपर मिल जाता है और वह पूरे ब्लॉटिंग पेपर पर फैले बिना नहीं रहती । व्यापारी के पुत्र के हाथों में भले एक ही रुपया हो, लाखोंकरोड़ों रुपयों की उथल-पुथल करने हेतु दौड़ लगाये बिना वह नहीं रहता।
सावरकुंडला की ओर विहार करते हुए एक गाँव में एक श्रावक के गृहमंदिर में गुरुदेव, हम आपके साथ चैत्यवंदन करने बैठे थे। केवल सात-आठ इंच की छोटी-सी धातु की बनी शांतिनाथ प्रभु की प्रतिमा के समक्ष अपना चैत्यवंदन हो रहा था और गुरुदेव, इस चैत्यवंदन में आप ऐसे ओत-प्रोत हो गये थे कि एक साथ तीन स्तवन और वो भी अलग-अलग रागों में बोलने के बाद ही आप रुके थे।
बाहर आने के पश्चात् आपने कहा था कि- "चन्द्रदर्शन से सागर में यदि लहरें उछलने लगती हैं तो प्रभु दर्शन से भक्त हृदय में भावों की लहरेंन उछलें, यह हो ही कैसे सकता है?"
गुरुदेव! विशिष्ट आराधना करने वाला महान् बनता है ऐसा नहीं है,परन्तु, जो आत्मा प्रत्येक आराधना को विशिष्ट रूप से करती है वही महान् बन सकती है। इस बात का सबूत आप स्वयं ही थे, यह मैंने अनेक बार आपश्री में देखा था।