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________________ "गुरुदेव ! आज तो सप्तमी है।" "मुझे मालूम है।" "आपका स्वास्थ्य भी अच्छा नहीं है।" "मैं जानता हूँ।" "डॉक्टर ने भी अभी तप करने से..." "मुझे इन्कार किया है।" "फिर भी आज आपने एकासना कर लिया?" गुरुदेव कहते हैं... दूध के पहले चूंट में ही हमें पता चल जाए कि दूध में शकर डालनी रह गई है, और प्रतिक्रमण पूरा हो जाने के बाद भी हमें पता न चले कि प्रतिक्रमण की इस मंगल क्रिया मेंहदय के शुभ भाव मिलाना हम भूल गये हैं, यदि ऐसी हमारी स्थिति है तो हमें निश्चित् रूप से समझ लेना चाहिए कि एकाग्रता और अहोभाव विहीन यह मंगलकारी क्रिया भी हमारे लिए उतनी फलदायी सिद्ध नहीं हो सकेगी जितना फल देने की उसमें शक्ति है। "पर कोई कारण?" अहमदाबाद-उस्मानपुरा के चातुर्मास के दौरान मंदिर में दर्शन करने के बाद गुरुदेव, मैंने आपसे यह प्रश्न किया था। "कल शाम के प्रतिक्रमण में एक छोटा-सा बच्चा "शांति" बोला था। तुमने सुनी थी?" "हाँ" "वह 'शांति' कैसी बोला था?" "बहुत ही सुंदर! बस, वह बोलता ही रहे और हम सुनते ही रहें ऐसी मधुर थी उसकी आवाज़।" "बस, तो उस बच्चे द्वारा बोली गई शांति' की अनुमोदना में आज मैंने एकासना किया है।" गुरुदेव! सत्कार्यों को करने के अवसर का लाभ तो आप उठा ही लेते थे, पर सत्कायों की अनुमोदना करने के लिए भी आप स्वयं अवसर खड़े कर लेते थे। कमाई करते ही रहने की आपकी कला कमाल की थी!
SR No.008925
Book TitleJivan Sarvasva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRatnasundarsuri
PublisherRatnasundarsuriji
Publication Year
Total Pages50
LanguageGujarati
ClassificationBook_Gujarati & Spiritual
File Size23 MB
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