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गुरुदेव कहते हैं... सागर से पूछिए, कितनी नदियों को स्वीकार करने के पश्चात् तुम और नदियों को स्वीकारने से इन्कार करोगे? आग से पूछिए, कितनी लकड़ियों को निगलने के पश्चात् तुम और अधिक लकड़ियों को निगलने हेतु तैयार नहीं होओगी? श्मशान से पूछिए, कितने शवों के अमिसंस्कार के पश्चात् तुम और अधिक शवों के अग्निसंस्कार से साफ इन्कार कर दोगे? मन से पूछिए, इन्द्रियों के माध्यम से कितने विषयसुखों को भोगने के पश्चात् तुम निश्चित् तृप्ति की अनुभूति करोगे?
२५ वर्ष की युवावस्था में चारित्रस्वीकार कंठ में झंकार।वाणी में मधुरता। आँखों में अमृताप्रमाद से दुश्मनी और सद्गुणों से दोस्ती। बुद्धि में तीक्ष्णता और जीवन में सरलता। प्रभुभक्ति में एकाग्रता और गुरुभक्ति में तन्मयता । स्व के प्रति कठोरता और सर्वजीवों के प्रति कोमलता। साहित्यसर्जन में असंतुष्ट और उपकरणों के सम्यक् उपयोग में संतुष्ट।
गोचरी में निर्दोषता और व्यवहार में निश्छलता।जीवन में सादगी और स्वभाव में ताजगी।जीव मात्र के प्रति वात्सल्यभाव और जड़ मात्र के प्रति विरक्तभाव । अप्रमत्तता के आग्रही और विचारशैली में निराग्रही। शक्ति कवित्व की और कला वक्तृत्व की ! स्तवनों में राग अद्भुत और प्रवचनों में वैराग्य भरपूर । निद्रा अल्प और तपस्या तीव्र ! विहार में थकान नहीं और अध्यापन में आराम नहीं।
जिनशासन के प्रति अनुराग तीव्र और दुर्गुणों के प्रति द्वेष तीव्र ! दृष्टि में निर्मलता और वृत्ति में पवित्रता! प्रमादस्थानों के साथ समझौता नहीं
और संघों में कहीं संघर्ष नहीं। सन्मार्गप्रवर्तक संयमियों के और सन्मार्गदर्शक युवाओं के।
गुरुदेव! आमवृक्ष पर आम लगते हैं, चीकू और सेव नहीं ! आपके जीवनवृक्ष पर कौनसे सद्गुण प्रकट नहीं हुए थे यह प्रश्न है।