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________________ ૪૧૨ શ્રી જીવાજીવાભિગમ સૂત્ર अप्पेगइया देवा विजयं रायहाणि सब्भितरबाहिरियं आसियसम्मज्जियोवलित्तंसित्तसुइसम्मट्ठ रत्थंतरावणवीहियं करेति । अप्पेगइया देवा विजयं रायहाणि मंचातिमंचकलियं करेंति, अप्पेगइया देवा विजयंरायहाणिं णाणाविहरागरंजियऊसिय जयविजयवेजयंति पडागाइपडागमंडियंकरेति । अप्पेगइया देवा विजय - रायहाणि लाउल्लोइयमहियं करेति । अप्पेगइया देवा विजयं रायहाणिं गोसीस-सरसरत्तचंदण- दद्दरदिण्ण-पंचगुलितलं करेंति, अप्पेगइया देवा विजयं रायहाणि उवचियचंदणकलसं चंदणघडसुकयतोरणपडिदुवारदेसभागं करेति । अप्पेगइया देवा विजयं रायहाणिं आसत्तोसत्त-विउलवट्टवग्घारिय-मल्लदामकलावं करेति । । अप्पेगइया देवा विजयं रायहाणि पंचवण्ण- सरससुरभिमुक्कपुप्फ-पुंजोवयारकलियं करेंति, अप्पेगइया देवा कालागुरु-पवर- कुंदरुक्क-तुरुक्क-धूवडज्ज्ञंतमघमर्घेतगंधद्धयाभिरामं सुगंधवरगंधियं गंधवट्टिभूयं करेंति । अप्पेगइया देवा हिरण्णवासं वासंति, अप्पेगइया देवा सुवणवासं वासंति, अप्पेगइया देवा एवं रयणवासं, वइरवासं, पुप्फवासं, मल्लवासं, गंधवासं, चुण्णवासं, वत्थवासं, आभरणवासं । अप्पेगइया देवा हिरण्णविहिं भाइंति, एवं सुवण्णविहिं रयणविहिं वइरविहिं पुप्फविहिं मल्लविहिं चुण्णविहिं गंधविहिं वत्थविहिं आभरणविहिं भाईति । T अप्पेगइया देवा दुयं णट्टविहिं उवदर्सेति, अप्पेगइया विलंबित णट्टविहिं उवदर्सेति, अप्पेगइया देवा दुयविलंबित णट्टविहिं उवदसेति, अप्पेगइया देवा अंचियं णट्टविहि उवदति, अप्पेगइया देवारिभियं णट्टविहिं उवदर्सेति, अप्पेगइया देवा अंचियरिभियं णट्टविहि उवदर्सेति । अप्पेगइया देवा आरभडं णट्टविहिं उवदर्सेति, अप्पेगइया देवा भसोलं णट्टविहिं उवदर्सेति, अप्पेगइया देवा आरभडभसोलं णट्टविहिं उवदर्सेति । अप्पेगइया देवा उप्पायणिवाय-पसत्तं संकुचिय पसारियं रियारियं भतसभतं णाम णट्टविहिं उवदर्सेति । अप्पेगइया देवा चउव्विहं वाइयं वाएंति, तं जहा - ततं विततं घणं झुसिरं । अप्पेगइया देवा चडव्विहं गेयं गायति, तं जहा - उक्खित्तयं पवत्तयं, मंदायं, रोइयावसाणं । अप्पेगइया देवा चडव्विहं अभिणयं अभिणयंति, तं जहा - दिट्ठतियं, पाडिसुयं सामंतोविणिवाइयं, लोगमज्झावसाणियं । अप्पेगइया देवा पीणंति, अप्पेगइया देवा तंडवेति, अप्पेगइया देवा लार्सेति, अप्पेगइया देवा बुक्कारेति, अप्पेगइया देवा पीणंति तडवेति लार्सेति बुक्कारेति अप्पेगइया देवा अप्फोडंति, अप्पेगइया देवा वग्गति, अप्पेगइया देवा तिवतिं छिंदंति, अप्पेगइया देवा अप्फोर्डेति वग्गंति तिवतिं छिंदंति, अप्पेगइया देवा हयहेसियं करेति, अप्पेगइया देवा हत्थिगुलगुलाइयं करेंति, अप्पेगइया देवा रहघणघणाइयं करेंति, अप्पेगइया देवा
SR No.008771
Book TitleAgam 14 Upang 03 Jivabhigam Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPunitabai Mahasati, Artibai Mahasati, Subodhikabai Mahasati
PublisherGuru Pran Prakashan Mumbai
Publication Year2009
Total Pages860
LanguagePrakrit, Gujarati
ClassificationBook_Gujarati, Agam, Canon, & agam_jivajivabhigam
File Size19 MB
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