SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 75
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 7 यह सब कैसे परिवर्तित हो गया ? इस पर विचार करें. जब उस हरिजन ( ने छुरीकी धार तेज करने के लिए आधे घंटे का समय माँगा था, तभी एक पडौसी हरिजन को दया आ गई. उसने चुपचुप सारी बातें सुन ली थीं. कहते हैं मारने वालेसे बचाने वाले के हाथ अधिक लम्बे होते है - मारनेवाले के दो हाथ होते हैं तो बचाने वालेके हजार हाथ होते हैं. श्रावकके पुण्यका उदय था. उसने पडौसी हरिजनको प्रेरित किया. वह उठकर तत्काल वेटिंगरूममें पहुँचा. सेठको जगाकर इशारेसे उसे बाहर बुलाया और पूछा:- “सेठजी । आप अपने प्राण बचाना चाहते हैं या धन ?'' सेठने कहा:- "मैं तो प्राण ही बचाना चाहता हूँ धन तो हाथ का मैल है. जिन्दा रहा तो और कमा लूंगा लेकिन, तुम यह सब क्यों पूछ रहे हो ? बात क्या है ? जरा साफ-साफ समझाओं." सज्जन हरिजने कहा:- “सेठजी । यह स्टेशनमास्टर बेईमान है. मेरे पडौसी हरिजनसे मिलकर उसने आपकी हत्या करनेका षड्यनत्र किया है. वह छुरी की धार तेज करके दस-पन्द्रह मिनिट बाद ही यहाँ आने वाला है. यदि आप अपने प्राण बचाना चाहते हों तो पेटी बिस्तर यहीं छोडकर चुपचाप मेरे साथ मेरे घर पर चलिये और वहीं रात बिताइये. सुबह गाँव वालोंको इकट्ठा करके स्टेशमास्टर से आपकी पेटी आपको दिलवा दूंगा, परन्तु इस समय यहाँ रुकनेमें खतरा है. आप चलिये. षड्यन्त्र की भनक पाते ही मेरी अन्तरात्मा ने मुझे आपके पास आनेकी प्रेरणा दी और मैं चला आया. समझ लीजिये कि आपके भाग्य अच्छे हैं आपकी आयु लम्बी है." श्रावक उस सज्जनके साथ दबे पाँव उसकी झोपडीमें चला गया. फटा-टूटा जैसाभी बिस्तर उसके घरमें था, बिछाकर उसी पर सेठको सुला दिया. उधर स्टेशनमास्टरका पुत्र गाँव में होने वाला एक नाटक देखने के लिए पिताजी की अनुमति लेकर गया था. वह नाटक देखकर अपनी साइकिल पर रातको लौट आया. उसने सोचा कि घरपर जाकर माँ को जगाने की अपेक्षा क्यों न वेटिंग रूम में ही लेटकर अपनी रात बिता दूं. वेटिंगरूम का दरवाजा भी खुला था. टोर्च से देखा तो बिस्तर भी लगा हुआ ....... .... ५७ For Private And Personal Use Only
SR No.008738
Book TitleSanshay Sab Door Bhaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages105
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy