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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir उस जमाने में लोग बीमार बहुत कम पडते थे इसलिए आज की तरह । डाक्टरोंकी जमात नहीं थी. खान-पान में लोग संयम रखते थे. होटल ही नहीं थे तो होस्पीटल कहाँ से आते ? सारी बीमारियों की जड़ होटल है, जो उस जमाने में कहीं नहीं था. यदि कोई वैद्य किसी के धर चला जाता तो सारे मुहल्ले वाले इकट्टे हो जाते थे और कहते थे मन-ही-मन कि यमराज का यह बड़ा भाई क्यों बुलाया गया ? वैद्यराज नमस्तुभ्यम् - यमज्येष्ठसहोदर । यमस्तु हरति प्राणां स्त्वं पून : सवसूनसून ॥ (हे वैद्यराज । हे यमराज के बड़े भाई । तुम्हें नमस्कार हो, क्यों कि यमराज जब आते है तो केवल प्राणोंका हरण करते हैं : किन्तु तुम धन भी हरण करते हो और प्राण भी ।) कहते है : पेट को नरम, पाँव को गरम, सिरको रखो ठंडा । फिर यदि डॉक्टर आये तो, मारो उसको डंडा ॥ आज तो स्थिति इतनी बदल गई है कि दिन में दस बार भी किसी के धर डॉक्टर आ जाये या कोई मर भी जाये तो मुहल्ले वालों को इकट्टा होने की फुर्सत नहीं मिलती मौत इतनी सस्ती हो गई है. अस्तु, उसी शहर में गंगा नामक एक बुढिया रहती थी उसके पेटमें कई दिनों से दर्द हो रहा था. उसने सोचा कि वैद्यराजके बेटे मफतलाल ने कुछ तो अपने बाप से सीखा ही होगा : इसलिए क्यों न उससे एक बार मिललूँ. वह वैद्यराजके धर आई. पेटदर्दकी शिकायत की मफतलाल को मालूम था कि पिताजी किसी भी रोगी की मलशुद्धिके लिए त्रिफला चूर्ण की पुड़िया सबसे पहले देते थे. पेटका मल साफ हो जाने पर अन्य दवाओं का असर झपाटे से होता है. बुढिया को पेटका ही दर्द था : इसलिए मफतलाल भाईने त्रिफला के चूर्ण की तीन पुड़ियाँ बनाकर दे दी और कह दिया कि गर्म पानी के साथ एक-एक पुड़िया सुबह उठते ही। प्रतिदिन ले लेना. फिर पाँच घंटे तक कुछ भी खाना मत पेट दर्द मिट जायगा. ४९ For Private And Personal Use Only
SR No.008738
Book TitleSanshay Sab Door Bhaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages105
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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