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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अग्निभूति : "हाँ, प्रभो। आप बिल्कुल ढीक फरमा रहे है वर्षों से मेरे मनमें कर्म के विषयमें यही शंका छिपी हुई थी. उसे मैंने कभी किसी के सामने प्रकट नहीं किया था आपके सामने भी उसका मैने कोई जिक नहीं किया, फिर भी आप मेरे मनकी बात जान गये. सचमुच आप सर्वज्ञ हैं. कृपया मेरी शंका का समाधान कर दें " महावीर स्वामी :- "हे अग्निभूति गौतम । पुरुष एवेदं सर्व यद् भूतं यच्च भाव्यम || इस वाक्यमें कर्मका उल्लेख नहीं है तो निषेध भी नहीं है. वास्तव में यह वेदवाक्य पुरूष (जीव) की नित्यता (अमरता) का प्रतिपादक है. जीव जो 'इदं' (वर्तमान) है, वही 'भूतं' (भूतकालमें मौजूद था) और वही भाव्यम्' (भविष्य कालमें भी मौजूद) रहेगा. वह सदा रहेगा. श्लोक है : जले विष्णु : स्थले विष्णु : विष्णु : पर्वतमस्तके । सर्वभूतमयो विष्णु : तस्माद्विष्णुमयं जगत् ॥ जल, स्थल और पर्वतश्खिर पर विष्णु है - सब प्राणियों में वह व्याप्त है. सारा जगत् विष्णुमय है. इस श्लोक में विष्णुकी प्रशंसा है उसकी महिमाका वर्णन है, परन्तु विष्णु के अतिरिक्त अन्य वस्तुओंका निषेध नहीं किया गया है : अन्य था यदि सारा जगत् विष्णुमय है तो "जल में विष्णु है' ऐसा प्रयोग भी नहीं हो सकता. उसके बदले "विष्णु में विष्णु है" ऐसा बोला जाता । कवि और भक्त जब किसी की प्रशंसा करते है तो उसमें अतिशयोक्ति अलंकार से बच नहीं सकते. रही बात अमूर्त से मूर्त के संयोग की, सो वह जो जगत् में प्रत्यक्ष देखा जाता है अमूर्त आकाशसे मूर्त बादलका संयोग होता है या नहीं ? मूर्त मदिरा अमूर्त जीव को उन्मत्त बनाती है : इसलिए केवल संयोग की बात ही नहीं है, अमूर्त्तको मूर्त प्रभावित भी करता है. शरीर भी मूर्त है, जो स्वस्थ होने पर आत्माको प्रसन्न और रूग्ण होने पर उदास बना देता है. जैसे तुम्हारे अरूपी संशयको मैं ने जान लिया, उसी प्रकार सब जीवोंके कर्मको भी मैं जानता हूँ. सुख-दुःख की अनुभूति तो तुम्हें भी होती ही है न ? वही प्रत्यक्ष कर्मफल है. यद्यपि आत्माका स्वरूप निर्मल है फिर भी राग, देष, विषय. कषाय, ४७ For Private And Personal Use Only
SR No.008738
Book TitleSanshay Sab Door Bhaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages105
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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