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उसके चक्करमें आने वाला नहीं हूँ. अभी जाकर मैं उसके होशहवास ठिकाने लगा देता हूँ और शास्त्रार्थ में पराजित करके उस धूर्त के पंजे से अपने भाईसाहब को छुड़ा लाता हूँ. अपने इष्टदेवका स्मरण करके वह भी समवसरण की ओर चल पड़ा उसके पाँच सौ छात्र भी साथ-साथ चल दिये. ज्यों ही वे समवसरण की परिधिके भीतर प्रविष्ट हुए कि उनका मनोविकार गायब हो गया.. साधनासे आत्मा इसी प्रकार प्रकाशित होती है, परन्तु हमें तो ऐसा कभी अनुभव ही नहीं हुआ. अनुभव उसी को होता है, जो प्रयोग करता है. इलेक्ट्रिक ग्लोब (लटू) में एक छोटा-सा वायर (तार) होता है, जो जलकर (गर्म होकर) स्थिर प्रकाश देता है उसका मेटल बनाने के लिए वैज्ञानिक एडिसन को तैतीस हजार बार प्रयोग करने पड़े, तब कहीं जाकर उन्हें सफलता मिल सकी. जब एक भौतिक वस्तुको दो इंचके वायर को सिद्ध करने के लिए तैतीस हजार एक्स्पेरीमेंट्स करने पडे तो आत्माको सिद्ध करने के लिए कितने एक्स्पेरिमेंट्स करने पडेंगे? . सामायिक, प्रतिकमण, जप, तप, ध्यान, कायोत्सर्ग, स्वाध्याय आदि सारे एक्स्पेरिमेंट्स है आत्मशुद्धि के लिए. महर्षि अरविंद धोष चालीस वर्षों तक एक कोठरी में बैठे रहे । जगत् से सम्बन्ध तोड़कर तब जाकर उन्हें आत्मान्वेषणमें सफलता प्राप्त हुई. हम तो जगत् को भी चाहते हैं और आत्माको भी. सेठ मफतलाल अहमदाबाद से एक बार बम्बई गये. चौमासेका समय था. जिसके यहाँ ठहरे थे, उसने उन्हें बता दिया था कि यह बम्बई है. यहाँ हर चीज की कीमत दुगनी बताई जाती है इसलिए कुछ खरीदना हो तो सावधान रहियेगा. मसलन यदि कोई दूकानदार किसी चीज का मूल्य सौ रूपये बताये तो आप उसे पचास रुपयेमें लेनेकी तैयारी बताइयेगा. सेठ मफतलालने बात गाँठ में बाँध ली. दोपहर के समय बाजार में निकले तो आकाशमें बादल छा गये. हलकी-हलकी बूंदाबांदी होने लगी. छातेकी जरूरत महसूस होते ही वे एक दूकान पर जा पहुँचे एक छाता पसंद करके उसका मूल्य पूछा दूकानदारने आढ रूपये बताये. सेठने कहा :- “चार रूपये में देना है ?"
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