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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir एक बार लाइट की प्रशंसा सुनकर एक अन्धेने पूछा "लाइट कैसी होती आदमीने उत्तर दिया - "व्हाइट" अन्धा :- "व्हाइट कैसी ?" आदमीने :- "दूध जैसी ?" अन्धा :- "दूध कैसा होता है ?" . आदमी :- बगुलेके पंख जैसा ।" अन्धा :- "बगुला कैसा होता है ? आदमीने अपना हाथ मोड़कर अन्धेके हाथसे स्पर्श कराते हुए कहा "जिसकी गर्दन इस प्रकार झुकी हुई होती है, उसे बगुला कहते हैं" अन्धेने कहा : "बस, अब मैं समझ गया कि लाइट इतनी टेढी होती है। आदमीने अपना माथा ठोक लिया कि इसे समझानेका प्रयास बेकार गया. वह उसे चिकित्सकके पास ले जाता है आँखोंका इलाज करवाता है. ज्यों ही इलाज के बाद आँखोंकी पट्टी खुलती है, वह देखने लगता है आँख वं प्रकाश से बाहर के प्रकाशका यथार्थ परिचय प्राप्त हो जाता है प्रकाशके विषय में उसका प्रश्न ही समाप्त हो जाता है सदाके लिए उसकी जिज्ञासा शान्त हो जाती है. जिस प्रकार प्रकाशसे प्रकाश का परिचय होता है, उसी प्रकार आत्मासे आत्माका परिचय होता है. अनुभवसे अनुभवी का ज्ञान होता है, गुणसे गुणी की प्रतीति होती है. शब्दों के माध्यमसे आत्मा का यथार्य परिचय दिया ही नहीं जा सकता "शब्दजालं महारण्यं चित्तभ्रमणकारणम् ॥" शब्दों की भीड घोर जंगलके समान श्रोता के चित्तको भ्रममें फंसा देगी. आत्म जिज्ञासुके लिए शब्दजाल बहुत खतरनाक होगा. यदि पूछा जाय कि घी का स्वाद कैसा होता है तो क्या उसे कोई बता सकता है ? कभी नहीं. उत्तर में यही कहा जायगा कि आप स्वयं उसे चखकर देखिये स्वाद मालूम हो जायगा और किसी से पूछना भी नहीं पड़ेगा. आत्माका अनुभव भी साधनाके माध्यम से साधक को स्वयं करना होगा. E .. ३६ For Private And Personal Use Only
SR No.008738
Book TitleSanshay Sab Door Bhaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages105
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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