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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इस प्रकार तर्क से कलई खुल गई, चोरी पकड़ ली गई, बीबीने भूल कबूल करके माफी माँग ली. कहनेका आशय यह है कि सिद्धान्त की रक्षाके लिए उसमें कोई गलत चीज़ प्रविष्ट न हो जाय, इस बातकी चौकीदारी के लिए सम्यक् तर्क का उपयोग किया जाता है. शास्त्रोंके परस्पर विरुद्ध वचनोंका समन्वय भी उसीसे किया जाता है. "विज्ञानघन...." आदि वेद पदोंसे जहाँ आपाततः यह मालूम होता है कि पानी में बलबलेकी तरह पंचमहाभूतों से उत्पन्न यह शरीर मरने पर फिर उन्हीं में विलीन हो जाता है, इसलिए आत्मा नामक कोई अलग पदार्थ नहीं है, वहीं अन्यत्र कई ऋचाएँ ऐसी भी है, जिनसे आत्माके अस्तित्वक बोध होता है. जैसे-“स वै अयं आत्मा ज्ञानमयः....." "अग्निहोत्रं जुहुयात्स्वर्गकामः ।" "नायमात्मा बलहीनेन लभ्यः ।", "सत्येन न लभ्यस्तपसा येष..." इत्यादी. इस प्रकार अनेक ऋचाओंमें आत्मा का उल्लेख यह सिद्ध करता है कि "विज्ञानघन एवैतेभ्यो भूतेभ्यः....." आदि पदोका कोई अलग अर्थ होना चाहिये. वह अलग अर्थ प्रभुने इन्द्रभूतिको समझाया. प्रत्युत्पन्नमति होने से वे तत्काल समझ भी गये. चाणकय ने ठीक ही कहा है : जले तैलं खले गुह्यं पात्रे दानं मनागपि। प्राज्ञे शास्त्रं स्वयं याति विस्तारं वस्तु शक्तित: ॥ जलमें तेल की एक बूंद भी डाली जाय तो जिस प्रकार वह सतहपर फैल जाती है-दुष्ट को ज़रा-सी भी गोपनीय बात बता दी जाय तो वह सब लोगों में जिस प्रकार फैल जाती है और सपात्रको जरासा भी दान दिया जाय तो उससे बहुत पुण्य प्राप्त होता है, उसी प्रकार बुद्धिमान को शास्त्र का ज्ञान दिया जाय तो वस्तुशक्ति (अपनी महत्ता) के कारण वह बहुत विस्तार से समझ लेता है. श्री इन्द्रभूतिने क्या समझा ? यह हम कल समझने का प्रयास करेंगे. कल विचार करेंगे कि किस प्रकार अपनी उलझन से उन्होंने सुलझनमें प्रवेश किया. ३२ For Private And Personal Use Only
SR No.008738
Book TitleSanshay Sab Door Bhaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages105
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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