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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org यह सुनकर राजा प्रसन्न हो गया, परन्तु पहले विद्वान ने भी बात वही कही थी, जो दूसरे ने कही. दोनों बातों का अर्थ एक ही था, परन्तु कहनेका ढंग भिन्न था. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir शास्त्रार्थमें धूर्तके साथ धूर्त्तताका प्रयोग करना पड़ता है. एक गाँवमें दण्डभारती नामक पंडित थे. अन्धीने काना राजा होता है, वैसे ही साधारण पढ़े-लिखे होकर भी गाँवके अनपढ़ मूखौके बीच वे महापण्डित माने जाते थे. कई शास्त्रार्थ वे जीत चुके थे. आगन्तुक को जीतने के लिए वे एक प्रश्न रखते थे- खव्या-खैयाा खैया" और कहते थे कि इसकी व्याख्या करो, अन्यथा अपने पोथी-पत्ते सौंप दो किसी शास्त्रम इन शब्दों का अर्थ नहीं था, अतः आगन्तुक हार मानकर चले जाते थे. उनकी कीर्ति एक विद्वान के कानों तक पहुँची. वह विद्वान् दण्डभारती से शास्त्रार्थ करने आया. दोनों के शास्त्रार्थ में मध्यस्थता गाँवमें रहनेवालोंने की. ये शास्त्रार्थ सुनने और फिर जीत-हार का निर्णय देनेके लिए बैठे. दोनोंके बीच यह शर्त हो गई कि जो भी हारेगा, उसे अपना सारा सामान जीतने वाले के कब्जे में देना दण्डभारतीने आगन्तुक से पूछा:आपका नाम क्या है ?" आगन्तुक :- "लट्ठभारती ।" दण्डभारती :- "पहले आप अपना प्रश्न रखिये. मैं उत्तर दूँगा. फिर मैं पूछूंगा लट्ठभारती:- "वेद चार होते हैं-इस बात का आप खण्डन कीजिये दण्डभारती:- "किसी घरमें केवल आदमी ही नहीं होते. जहाँ आदमी होते हैं, वहाँ औरतें भी होती है और बच्चे भी होते हैं. उसी प्रकार चार वेदोंके साथ उनकी चार पत्नियाँ और चार बच्चे भी होंगे, इसलिए वेद कुल बारह हो गये, चार नहीं रहे. हो गया आपकी बातका खण्डन अब मेरा प्रश्न सुनिये - खव्वा खैया खैया-इस पदकी व्याख्या कीजिये. लट्ठभारती:- "यह पद सन्दर्भ से रहित है. पहले खोदै खुदैया, बोवै बुवैया, सीचे सिंचैया, उगे उगैया, काटै कटैया, पीस पिसैया, बेलै बिलैया. सेकै सिकैया आदि प्रक्रियाओंके बाद अन्तमें खव्वा खैया खैया. गाँववालोंने फैसला दे दिया कि लट्ठभारतीजी जीत गये. दण्डभारतीजी को घर का सारा सामान सौंपकर उस गाँव से भाग जाना पड़ा । स्वामी विवेकानन्दसे अमेरिका में किसी ने पूछा:- "आपने जूते अमेरिकन क्यों पहिने हैं ? भारतीय संस्कृति को आप उत्तम समझते है तो जूते भारतीय क्यों नहीं पहिने ?" २८ For Private And Personal Use Only
SR No.008738
Book TitleSanshay Sab Door Bhaye
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year
Total Pages105
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size8 MB
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