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श्री इन्द्रभूतिकी उलझन का कारण क्या था ? अनेकान्त दृष्टि का अभाव. एकान्त संघर्षका कारण बनता है. अनेकान्त संघर्ष मिटाता है. अनेकान्तवादी एक में अनेकको देखता है और अनेक में एकको. विश्व एक है. एक वचनमें उसका प्रयोग किया जाता है, किन्तु विश्वमें देश अनेक है-देशमें प्रदेश अनेक है-प्रदेशमें सम्भाग अनेक है-संभागमें जिले अनेक है-जिलेमें तहसील अनेक हैं-तहसील में गाँव अनेक है-गाँव में घर अनेक है-घरमें कमरे अनेक है-कमरेमें रहनेवाले अनेक हैं और रहने वाले प्रत्येक व्यक्ति के विचार अनेक हैं. प्रभुने आचारांग सूत्रमें कहा है
"जे एगं जाणइ से सव्वं जाणइ ।
जे सव्वं जाणइ से एगं जाणइ ॥" (जो एक को (आत्माको) जानता है, वह सबको जानता है और जो सबको जानता है, वह एक (आत्मा) को जानता है) बहुतसे व्यक्ति समझते हैं कि स्याद्वाद (अनेकान्तवाद) संशयवाद है, परन्तु उनकी समझ भ्रमपूर्ण है, क्योंकि संशय में दोनों कोटियोंका अनिश्चय होता है, जैसे-"यह चाँदी है या सीव ?" देखने वालेको न चाँदीका निश्चय है और न सीप का ही. इससे विपरीत अनेकान्तवाद में दोनों कोटियोंका निश्चय होता है. यदि गिलास दूध से पूरा भरा हुआ न देखकर एक आदमी कहता है-"आधा गिलास भरा है" और दूसरा आदमी कहता है-"आधा गिलास खाली है" तो इनमें से आप किसके कथन को गलत मानेंगे ? दोनों कथन परस्पर विरुद्ध होकर भी सही है. दोनों कोटियाँ जहाँ निश्चित हों, वहाँ संशय कैसे हो सकता है ? अनेकान्तवादी बहुत विवेकी होता है. उसके उत्तर से कोई अप्रसन्नता नहीं हो सकता. एक राजाने स्वप्नमें देखा कि उसकी बत्तीसी गिर गई है. प्रातः उढते ही स्वप्नफलपाठकों को बुलाया. एकने कहा:-"आपके सारे कुटुम्बी आपने सामने मर जायेंगे ।" सुनकर राजा उदास हो गया. ठीक उसी समय दूसरे स्वप्नफलपाठकने कहा:- "अपने कुटुम्बियोंमें आपकी आयु सबसे अधिक लम्बी है।"
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