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छात्रने कहा:चाहिये.'
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" अरे ! इसमें बुरा मानने की क्या बात है ? प्रश्नका उत्तर सुनकर तो मुझे प्रसन्नता ही होगी. निर्भय होकर बोलो." प्रोफेसर साहबने कहा और उत्तर सुनने के लिए उत्सुक होकर उस छात्र की ओर देखने लगे. "सर । आपकी अवस्था इस समय चवालीस वर्षकी होनी
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प्रसन्न होकर प्रोफेसर मफतलाल बोले:- "बिलकुल ठीक कहा तुमने मेरी अवस्था चवालीस वर्ष की ही है, परन्तु किस फार्मूलेसे तुमने यह मालूम किया ? यह भी बता दो, क्योंकि कई महीनोंसे यह प्रश्न मुझे परेशान किये हुए था और कोई फार्मूला मुझे नहीं मिल रहा था. तुमने तो एक मिनिटमें इस सवालको हलकर दिया
छात्रने कहा:- "फार्मूला मत पूछिये उत्तर आपको मिल गया. उसीमें सन्तोष मानिये. फार्मूला जानकर आप नाराज़ हो जायँगे - बुरा मानेंगे." प्रोफेसर:- "मैं कहता हूँ कि फार्मूला सुनकर मैं जरा भी नाराज नहीं होनेवाला हूँ-बिल्कुल बुरा मानने वाला नहीं हूँ. बेखटके तुम बतला दो. छात्र ने कहा :- "तो सुनिये मेरा बड़ा भाई दिनभर ऐसे ही प्रश्न करता रहता है. बहुत-से डाक्टरोंको दिखाया - साइकोलोजिस्ट को दिखाया - वैद्योंको दिखाया-हकीमोंको दिखाया सबकी जाँचका एक ही निष्कर्ष निकला कि वह हाफ मैड है. उसकी अवस्था इस समय बाईस् वर्ष है तो आपकी चवालीस होनी ही चाहिये, क्योंकि बाईस के दूने चवालीस ही होते हैं. (दो "हाफ' को मिलाने से एक "फुल" होता है. आप फुल मैड हैं) "
कहनेका आशय यह है कि प्रश्न यदि गलत है तो उत्तर भी गलत ही मिलेगा.
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प्रभु महावीरके समीप खड़े इन्द्रभुति सोच रहे हैं कि गोत्रसहित मेरा नाम तो सारी दुनियामें प्रसिद्ध है, इसलिए इन्होंने भी जान लिया हो तो कोई बड़ी बात नहीं है. केवल यही बात इनकी सर्वज्ञता को प्रमाणित करने केलिए पर्याप्त नहीं हो सकती. हाँ, यदि मेरे मनमें छिपी हुई शंका ये जान लें और यह भी जान लें कि उसका आधार क्या है तो अवश्य मान लूँगा कि ये सर्वज्ञ है.
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