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कविके लिए कौन - सा रस अपोष्य है ? चक्रवर्ती के लिए कौन-सा देश अजेय है ? वज्र के लिए कौन-सी वस्तु अभेद्य है ? महायोगियोंके लिए कौन-सी सिद्धि असाध्य है ? क्षुधापीडितों के लिए कौन-सी वस्तु अभक्ष्य है ? दुष्टोंके लिए कौन-सा शब्द अवाच्य है ? कल्प वृक्ष, कामधेनु या चिन्तामणि के लिए कौन-सी वस्तु अदेय है ? इसी प्रकार मेरे जैसे सर्वशास्त्रविशारद महापणित के लिए इस जगत में कौन-सा वादी अजेय है ? कोई नहीं. शेरकी दहाड़ सुनकर जिस प्रकार जंगली समस्त पशु-पक्षी काँप उठते हैं वैसे ही मेरी गर्जना सुनकर वह बेचारा वादी व्याकुल हो जायगा तो हो जाय. मैं भी क्या कर सकता हूँ? उसने चुनौती दी है, इसलिए मुझे चर्चाके लिए जाना पड रहा है, अन्यथा किसीको लज्जित करने में मुझे कोई मज़ा नहीं आता.
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ऐसे विचारों में डूबा हुआ श्री इन्द्रभूति ज्यों ही समवसरण के द्वार पर पहुँचकर सीढीकी पहली पंक्ति पर कदम रखता है, त्यों ही अशोकवृक्षके नीचे छत्रत्त्रयमण्डित स्वर्ण सिंहासन पर बिराजमान प्रभु महावीर की निष्फल पूर्ण चन्द्र के समान सौम्य शान्त- प्रकाशमय तेजस्वी मुखमुद्रा देख कर प्रविष्ट होते ही उसका गर्व गल जाता है वह सोचने लगता है कि यह महापुरुष है कौन ?
क्या यह ब्रह्मा है ? नहीं, क्योंकि वह तो जगत् के निर्माणमें प्रवृत्त है, यह निवृत्त है - वह तो वृद्ध है, यह जवान है-उसका वाहन हंस है, इसका कोई वाहन ही नहीं है - उसके साथ सावित्री है, यह अकेला है तथा उसका आसन कमल है, इसका सिंहासन.
तो क्या यह विष्णु है ? नहीं, क्योंकि उसका शरीर काला है, इसका गोरा
• उसके साथ लक्ष्मी है, यह अकेला है उसके चार हाथ है, इसके दो हाथ हैं - उसके चारों हाथों में क्रमशः शंख, चक्र, गदा और पदम हैं, इसके हाथ खाली है (इसके दोनों हाथोंमें कोई (हथियार नहीं
शेष नागकी शैयापर सोता है, यह सिंहासन पर बिराजमान वह
ह--उसका
वाहन गरूड़ है, यह पादविहारी है ।
तो क्या यह महेश्वर (शंकर) है ? नहीं, क्योंकि उसकी तीन आँखें हैं, इसकी केवल दो-उसके साथ पार्वती है, यह अकेला है-उसका वाहन नन्दी है, यह पदयात्री है।
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