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५९. प्रार्थना एक समय जब भयंकर दुष्काल चल रहा था, तब गाँव के लोग प्रार्थना करने के लिए एकत्र हुए । एक वणिक प्रार्थना में सम्मिलित नहीं हुआ, इसलिए सब लोग उसे प्रार्थना करने के लिए बुलाने लगे । लेकिन उस वणिक ने प्रार्थना में जाना स्वीकार नहीं किया; क्योंकि गाँव के लोगों का धर्म सिर्फ दिखावे का था, हृदय का नहीं । झूठे लोगों की प्रार्थना भगवान् नहीं सुनता है ।
गाँव के लोगों ने बहुत प्रार्थना की, फिर भी वर्षा जरा भी नहीं हुई । दुष्काल फैलता ही गया । भगवान ने प्रार्थना नहीं सुनी । बाद में वह वणिक हाथ में तराजू लिये भगवान् से प्रार्थना करने लगा : यदि इस तराजू को मैंने देव माना हो, इस तराजू से किसी को दुःख न पहुँचाया हो और इससे लोगों के दुःख दूर किये हों तो वर्षा होगी और दुष्काल चला जायेगा ।” प्रार्थना होते ही मूसलाधार वर्षा हुई ।
धर्म को हृदय में उतारना चाहिए । धर्म दिखावा करने के लिये नहीं है । धर्ममय जीवन जीनेवाले की प्रार्थना में सात्त्विकता होती है और इससे प्रकृति के तत्त्वों पर भी वे विजय प्राप्त कर सकते हैं ।
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