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६०. व्रतपालन व्रत लेकर पालन न करें तो उसकी कोई कीमत नहीं है । व्रत लेने के विषय में तो हम बड़े बहादुर हैं, लेकिन उसके पालन में बहुत निर्बल हैं । एक भी व्रत का पालन अगर ठीक से करेंगे तो उसके पीछे-पीछे कई व्रत खिंचकर आयेंगे।
एक चोरने असत्य न बोलनेका व्रत लिया । चोरी करने जाते समय सिपाही ने उसे रोका और पूछा तो उसने उसे सब सत्य कह दिया । बाद में उसने चोरी की और पकड़ा गया तो राजा के सामने भी उसने सत्य कहा । राजाने कहा, "तू चोर है तो चोर के रूप में ही अपने आपका परिचय क्यों देता है ?
चोर ने उत्तर दिया, “चोरी करना मेरा धंधा है और असत्य न बोलना यह मेरी प्रतिज्ञा है । सत्य बोलने के इस व्रत के पालन से राजाने उसे सेनापति पद पर रख लिया । एक ही व्रत का अगर संपूर्ण रूप से पालन किया जाय तो जीवन उज्ज्वल हो जाता है ।
व्रत लें, लेकिन भावना न हो तो व्रत व्यर्थ बन जाता है । दियासलाई जलाने पर बीच में अगर दीवार न हो तो वह हवा से बुझ जाती है । दीपक के आसपास जैसे चीमनी रखनी पड़ती है, वैसे ही भावना व्रतों की चीमनी है।
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