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५७. पसंद
हमें निगोद में जाना है या सिद्ध
अवस्था को प्राप्त करना है ?
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प्रभु ने हमें वह मार्ग बताया है ।
हम प्रवासी हैं, निवासी नहीं । जिस तरह निगोद अवस्था से विकास करते-करते आज हम मनुष्य बने हैं, उसी प्रकार विकास करते-करते हमें सिद्ध भी बनना है ।
“हे चेतन, तूने आधा रास्ता तो तय कर लिया है । आधा रास्ता अब और तय कर ले तो अनंत ज्ञान का स्वामी हो सकता है ।
“चेतन !, तू पस्ती का व्यापारी नहीं है । कषाय-विषय पस्ती जैसे हैं । तू तो रत्नों का मालिक है, सर्व सद्गुणों का स्वामी है ।"
काम, क्रोध, मान, लोभ माया, इत्यादि पस्ती के समान हैं; त्याग, समता, संतोष, (नम्रता) सरलता, आदि रत्नों के समान हैं ।
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