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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ३८. कर्म और ब्याज प्रियपात्र बनकर भी बैर मोल लिया जा सकता है, इसलिए कर्म करने से पहले विचार कर लेना चाहिए । एक वृद्धा ने किसी प्रकार की लिखापढ़ी के बिना एक सेठ के पास बीस हजार रुपये रखे । जब वह लेने के लिए गई, तब सेठ ने इन्कार कर दिया । वह रकम वृद्धा दान में खर्च करना चाहती थी । रकम न मिलने से उसे आघात लगा और उस आघात से वह मर गयी । नव माह बाद सेठ के घर पुत्र का जन्म हुआ । पुत्र के पीछे सेठ ने बहुत पैसे खर्च किये । पुत्र चतुर, बाहोश, बुद्धिमान् था, परन्तु जब शादी की तैयारी चल रही, थी, तभी बीस साल का अरमान भरा वह पुत्र मर गया । इससे सेठ को भयंकर वज्र के समान आघात लगा । तब उनके मुनीम ने उन्हें समझाया कि “वह वृद्धा हो आपके पुत्र के रूप में आई थी और बीस हजार के बजाय अनेक हजार रुपये बीस साल में खर्च करा के गई और ब्याज में आपको रोना मिला ।" सेठ कर्म का मर्म खोजते ही रह गये । CG For Private And Personal Use Only
SR No.008736
Book TitleSamvada Ki Khoj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1990
Total Pages139
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size6 MB
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