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३९. अंतरेच्छा मातापिता को पुत्र की सद्गति की ही इच्छा रखनी चाहिए । खानपान में तथा शिक्षा के विषय में पुत्र की आत्मोन्नति का ख्याल रखना चाहिए । एक माता अपने लाड़ले को लोरी सुनाती है, – “हे पुत्र ! तू शुद्ध-बुद्ध है, निरंजन-निराकार है, अजरअमर है । संसार का त्याग कर आत्मा को अमर बना । तुझे इस जन्म में सिद्धियों को बाहर लाना है । दुनिया का कोई रंग तुझे लगनेवाला नहीं है । तेरा रंग श्वेत है, ध्यान रहे, संसार की मोहमाया में फँस मत जाना ! संसार स्वप्नवत् है । आँख बंद होते ही कुछ नहीं रहेगा ।"
साधना के द्वारा अंतर का बलौना कर आत्मशुद्धि करनी है । आत्मशुद्धि के ध्येय के बिना कोई भी क्रिया दंभ है, केवल प्रदर्शन है ।
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