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३४. देव
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देव चार प्रकार के होते हैं भवनपति, व्यंतर, वैमानिक और ज्योतिषी । प्रथम दो हमारे नीचे होते हैं और दूसरे दो हमारे ऊपर |
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देवों के पास अपार सुख, वैभव और समृद्धि होते हैं, लेकिन त्याग नहीं होता; इसी से वे उत्तम पुरुषों के चरणों में नत होते हैं । त्याग की ताकत मनुष्य में होती है । त्याग से राग का नाश होता है और आत्मा उच्च स्थान को प्राप्त करती है ।
प्रथम दो देवलोक के देवताओं (सौधर्म और ईशान) के भोग की इच्छा की तृप्ति शरीर से होती है, परन्तु बाकी के ऊपर के देवलोक में भोगेच्छा की तृप्ति शरीर से नहीं, अपितु केवल देवी को देखने, उसके शब्दों को सुनने या स्मरण मात्र से ही हो जाती है ।
त्याग का फल मोक्ष है । उत्तम देवगण भी तैंतीस सागरोपम तक आत्मस्मरण करते हैं । अनुत्तर देवों का संगीत मोती में से प्रकट होता है और वे संगीत में आत्मस्मरण करते हैं । आत्मा की संवादमय बातों और संगीत से आत्मस्मरणता में वृद्धि होती है ।
त्याग का परिणाम संवाद है । त्यागी को प्रसिद्धि से दुःख होता है । वे नाम के लिए नहीं, काम के लिये जीते हैं ।
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