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३३. शरीर जहाँ देवों और नारकों की उत्पत्ति होती है, वह स्थान अचित्त होता है, जबकि मनुष्य
और तिर्यंच के उत्पत्तिस्थान सचित्त होते हैं । जीवों के शरीर पाँच प्रकार के होते हैं :
औदारिक, वैक्रिय, आहारक, तैजस और कार्मण । मनुष्य और तिर्यंच के शरीर
औदारिक होते हैं, जिसके द्वारा सुख-दुःख का अनुभव किया जाता है । देवों और नारकों के वैक्रिय शरीर होते हैं, जो पारद की भाँति अलग हो जाते हैं और पुनः मिल भी जाते हैं। .... आहारक शरीर पुण्यात्मा चौदह पूर्वधरों को ही हो सकता है । जब उन्हें शंका समाधान हेतु तीर्थंकर परमात्मा के पास जाना होता है तब वे आहारक शरीर बनाकर अंतर्मुहूर्त में वहाँ जाकर वापस आ सकते हैं । तैजस और कार्मण शरीर संसार के हर एक जीव को होता है । औदारिक से वैक्रिय शरीर अधिक सूक्ष्म होता है, वैक्रिय से आहारक अधिक सूक्ष्म और आहारक से तैजस और कार्मण शरीर अधिक सूक्ष्म होते हैं।
प्रथम तीन मर्यादित हैं, परन्तु तैजस् तथा कार्मण अनन्त हैं । मृत्यु हो जाने पर
औदारिक, वैक्रिय और आहारक शरीर को छोड़ना पड़ता है, परन्तु शेष दो तैजस् और से कार्मण शरीर साथ जाते हैं ।
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