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३२. निखालसता जिनके पास से विद्या लेते हैं, उन्हें पूजनीय गुरु मानना चाहिए । जिसने ज्ञान का प्रकाश दिया और भटके हुए को मार्ग बताया ऐसे गुरु की पूजा करनी चाहिए । उनके उपकार का बदला हम कई जन्मों तक भी नहीं चुका सकते ।
एक नाई को एक मंत्र आता था । उस मंत्र की सहायता से वह अपनी थैली को आसमान में लटका कर रखता और जरूरत पड़ने पर उसे उतार लेता था । एक साधुने नाई के पास से यह मंत्र-विद्या सीख ली । वह दूर कहीं जाकर एक तुंबा पानी से भरकर आसमान में लटका कर रखता । जब लोगों ने उससे पूछा कि “आपने यह विद्या किस के सीखी ?” तब साधुने कहा, "मैंने यह विद्या हिमालय पर जाकर और कठिन तप करके सीखी है ।”
साधु ने गुरु का नाम छिपाया, उनकी अवगणना की, इसलिए आसमान में लटका या हुआ वह तुंबा साधु के सिर पर जाकर पड़ा, जिससे उसका सिर फट गया ।
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