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२७. करुणा और त्याग
सम्यक् दृष्टिवाली आत्मा के हृदय में करुणा का स्रोत बहता है । मानव के जीवन में करुणा की स्निग्धता हो तो उसके उत्तर में सुंदर बगीचा तैयार होगा ही । करुणासिक्त हृदय की तुलना न तो मोम के साथ की जानी चाहिए, और न मक्खन के साथ । क्योंकि मोम अग्नि के संपर्क से पिघलता है, इसी तरह मक्खन भी अग्नि के संस्कार से घी बन जाता है, किंतु करुणासिक्त हृदय तो दूसरों के दुःख देखते ही पिघल जाता है । दूसरों का दुःख उसका अपना दुःख बन जाता है । जब तक वह दूसरों का दुःख दूर नहीं कर लेता, तब तक उसे चैन प्राप्त नहीं होता | अहिंसक आत्मा दूसरों का दुःख देखकर केवल 'अरे ! अरे ! नहीं करती, किंतु वह यह भी मानती है कि जबतक दूसरों का दुःख दूर नहीं करेंगे, तब तक विश्व में कभी सुख और शांति नहीं आयेगी ।
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हम अधिक परिग्रह रखकर प्रजा का दुःख दूर नहीं कर सकते । व्यक्ति स्वयं त्याग करता है, तब ही दुनिया में सृजन होता है ।
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