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१ प्रबल फव्वारे की तरह उत्तम पुद्गलों को, फेंकती है । भावनाएँ यदि अमंगल हों तो कभी कोई कार्य सिद्ध नहीं होता ।
वस्त्रों के ऊपर अगर अच्छी छपाई करनी हो तो कपड़ा स्वच्छ और अच्छा होना चाहिए, उसी प्रकार मोक्ष प्राप्त करने के लिए मन को भी योग से धोना चाहिए । योग मन को स्वच्छ करता है।
योग का प्रभाव अपूर्व है । वह कर्मों को जला देता है ।
योग से जिसका मन शुद्ध नहीं हुआ है, वह व्यक्ति पशु के समान जीवन बिताता है । योग के द्वारा मन, वचन और काया सुंदर एवं संस्कारीक बनते हैं । ज्ञान, दर्शन और चारित्र से मनुष्य का मन योग की ओर उन्मुख होता है।
लेकिन बिना ज्ञान के योग व्यर्थ है ।
पर' में भटकते रहना बहुत ही आसान है, किंतु आत्मा का ज्ञान प्राप्त करना और उसी ज्ञान में रमण करना यह कठिन है ।
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