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२८. दृष्टि ज्ञान बाहर की वस्तु को देखता है, किंतु दृष्टि अंदर की वस्तु को देखती है । बाहर का ज्ञान याने पुस्तक, जबकि दृष्टि पुस्तक के अंदर रहे हुए ज्ञान का नाम है । महापुरुष दृष्टि रखते हैं, जबकि जगत् ज्ञान की ओर भागता है । चाहे थोड़ा ही पढ़े हों, फिर भी जीवन में अगर दृष्टि आ जाय तो जीवन सुधर जाता है ।
किसी समय करोड़ों रुपयों का कोई यंत्र बिगड़ गया । उसे ठीक करने के लिए बहुत से आदमी आये । लेकिन यंत्र में क्या खराबी है, यह कोई समझ न सका । अंत में एक दृष्टिवाला (होशियार) एंजिनियर आया और बॉयलर यन्त्र के जिस भाग में रिपेरिंग करना था, वहाँ दो चार बार हथौड़ा मारा, जिससे यंत्र चालू हो गया ।
एंजिनियर ने १००१) डॉलर माँगे । उससे जब पूछा गया कि १०००) डॉलर से १) डॉलर ज्यादा क्यों ? तो उसने जवाब दिया, “हथौड़ा मारने का मूल्य एक डॉलर है और बुद्धि का (दृष्टि का) १००० डॉलर ।”
दुनिया में जो लोग आगे बढ़े हैं, उनके पास ज्ञान और दृष्टि दोनों होते हैं । पीछे रहनेवालों के पास केवल ज्ञान होता है । ज्ञान ।
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