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सकता | शब्द का अर्थ नय से होता है और बात का विचार प्रमाण से होता है । जैसे नय के आधार पर 'राजा' शब्द का एक ही अर्थ होता है, प्रमाण से उसके अनेक अर्थ होते हैं ।
नय के द्वारा अर्थ की प्राप्ति होती है और प्रमाण के द्वारा निर्णय लिया जाता है ।
"आत्मा" शब्द बोलने पर केवल शब्द बोला जाता है, एक में (नय में) संवेदन' और दूसरे में (प्रमाण में ) 'चिंतन' है ।
प्रमाण को समझकर ही आचरण करना चाहिए । ज्ञान तो सब के पास होता है, किंतु उस ज्ञान के अनुसार आचरण करना कठिन है । जब क्रिया का चिंतन होता है तभी मन में भाव उत्पन्न होता है ।
क्रिया को 'अर्थ' मिल जाय तो प्रमाद चला जाता है, जब तक क्रिया को 'अर्थ' नहीं मिलता तब तक प्रमाद उड़ता नहीं है ।
शब्दों का अभ्यास तो बहुत किया, लेकिन अर्थ हम एक भी नहीं समझे । अर्थ समझ में आने के बाद ही आनंद उत्पन्न होता है और तब अर्थ के चिंतन से आत्मा का कल्याण होता है । अर्थ एकांत में उपासना और साधना की अपेक्षा रखता है । शब्द बनाना आसान है, लेकिन अर्थ करना कठिन है ।
नय को प्रमाण के घर में ले जाने से 'अर्थ' प्राप्त हो जाता हैं ।
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