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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सकता | शब्द का अर्थ नय से होता है और बात का विचार प्रमाण से होता है । जैसे नय के आधार पर 'राजा' शब्द का एक ही अर्थ होता है, प्रमाण से उसके अनेक अर्थ होते हैं । नय के द्वारा अर्थ की प्राप्ति होती है और प्रमाण के द्वारा निर्णय लिया जाता है । "आत्मा" शब्द बोलने पर केवल शब्द बोला जाता है, एक में (नय में) संवेदन' और दूसरे में (प्रमाण में ) 'चिंतन' है । प्रमाण को समझकर ही आचरण करना चाहिए । ज्ञान तो सब के पास होता है, किंतु उस ज्ञान के अनुसार आचरण करना कठिन है । जब क्रिया का चिंतन होता है तभी मन में भाव उत्पन्न होता है । क्रिया को 'अर्थ' मिल जाय तो प्रमाद चला जाता है, जब तक क्रिया को 'अर्थ' नहीं मिलता तब तक प्रमाद उड़ता नहीं है । शब्दों का अभ्यास तो बहुत किया, लेकिन अर्थ हम एक भी नहीं समझे । अर्थ समझ में आने के बाद ही आनंद उत्पन्न होता है और तब अर्थ के चिंतन से आत्मा का कल्याण होता है । अर्थ एकांत में उपासना और साधना की अपेक्षा रखता है । शब्द बनाना आसान है, लेकिन अर्थ करना कठिन है । नय को प्रमाण के घर में ले जाने से 'अर्थ' प्राप्त हो जाता हैं । ३१ For Private And Personal Use Only
SR No.008736
Book TitleSamvada Ki Khoj
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPadmasagarsuri
PublisherArunoday Foundation
Publication Year1990
Total Pages139
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Spiritual
File Size6 MB
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